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Hindi Ki Sahityaik Patrkarita
हिंदी गद्य के विकास में मासिक पत्रों ने सर्वाधिक योगदान दिया है । वास्तव में मासिक पत्रों द्वारा जिस पत्रकारिता का स्वरूप निर्मित हुआए उसे देखते हुए इसे साहित्यिक पत्रकारिता कहना अधिक उपयुक्त है । इनमें से अधिकांश पत्रों का स्वरूपए प्रवृति तथा प्रभाव साहित्यिक था । निश्चित ही कुछ पत्रिकाएं इसका अपवाद थींए जैसे मासिक पत्रिका ‘मर्यादा’ तथा ‘प्रभा’ । इन दोनों में साहित्य की अपेक्षा राजनीतिक घटनाओं का विवेचन अधिक था । किंतु ऐसे मासिक पत्रों की संख्या तुलनात्मक दृष्टि से कम थी । अधिकांश मासिक पत्रों की प्रवृत्ति साहित्यिक होने से उनके संपादकों में भी साहित्यिक अन्तश्चेतना तथा साहित्य सेवा ही प्रधान थी । इस दृष्टि से हिंदी गद्य विकास का अधिकांश अंश मासिक पत्रों से पल्लवित हुआ । दैनिकए साप्ताहिक पत्रों की भाषा का संबंध जनसामान्य से अधिक होता हैए किन्तु मासिक पत्रों में प्रकाशित सामग्री और भाषा दोनों का संबंध साहित्यकारए साहित्य प्रेमी तथा बौद्धिक वर्ग से अधिक होता है । यही कारण है कि दैनिक तथा साप्ताहिक पत्रों की भाषागत त्रुटियों की ओर लोगों का ध्यान कम जाता है । किंतु मासिक पत्रों में भाषा संबंधी त्रुटि अथवा प्रकाशित सामग्री संबंधी दुर्बल शैली पर बौद्धिक समूह का ध्यान हमेशा रहता है । साहित्य समाज का दर्पण है और बहुत हद तक समाज साहित्य का । हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता हिंदी साहित्य के विकास का अभिन्न अंग है । वस्तुतः हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता हमारे आधुनिक साहित्यिक इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है । हिंदी की गद्य शैलियों की स्थापना में साहित्यिक पत्र–पत्रिकाओं का योगदान विशेष रहा है । कहा जा सकता है कि हिंदी के गद्य साहित्य और गद्य विधाओं का उदय ही हिंदी पत्रकारिता से हुआ है । --भूमिका से
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