• New product

Hindi Natak : Stri Sandarbh

(0.00) 0 Review(s) 
2023
978-93-92998-17-1
Pragya

Select Book Type

Earn 4 reward points on purchase of this book.
In stock

सुंदरवन के मिथक का पुनर्पाठ यह है कि सुंदरवन कथा में वह यूटोपिया है जहां व्यवस्था की परंपरागत सोच से मनुष्य को मुक्ति मिल जाती है । यह वह जगह है जो व्यक्ति के रूप में उसे चयन का अधिकार देती है । स्त्रीत्व को चुनने का अधिकार यहां सुद्युम्न को सहज प्राप्य है । यहां आकर वह स्त्री की तरह जी सकता है, व्यवहार कर सकता है, प्रेम और विवाह कर सकता है । संतान उत्पत्ति कर सकता है । मां बनने का सुख उठा सकता है । यह सुंदरवन का मिथक सुद्युम्न से मुक्ति और इलाके जीने में अपनी सार्थकता पाता है । साथ ही कृत्रिम आरोप से मुक्त होकर अभिव्यक्ति की निर्भीकता भी इला पाई जाती है । उद्दाम प्रेम में नाचती इला कहती है ‘‘तुमने, पिता ने, राज्य ने – सबने मिलकर छीन लिया था मुझे–मुझसे! अब मैंने पा लिया है अपना रूप...। ‘मैं’ इस समय जो हूं, वही हूं – संपूर्ण, अखंड, समग्र! यही मेरा आत्म–रूप है, मेरी प्रकृति, मेरा सत्य मेरा ऋतु! (घोषणा करती–सी गूंजते शब्दों में) सुनो सब ! मैं बाहर हूँ तुम्हारे... तुम सबके कारागार से!’’ यही है सुंदरवन की सुंदरता और मंच पर तेज़ संगीत क्षिप्र ताल में बजता है । संतरंगा प्रकाश सुद्युम्न के इला में रूपांतरण को सामने लाता है और उसका नारीत्व बुध से मिलकर पूर्णता को पाता है । तृतीय लिंग अपनी मुक्ति का उद्घोष करता है । नाटक की प्रस्तुति में निर्देशक के सचेत प्रयास ने श्रद्धा की भूमिका निभाने वाली तृप्ता जौहरी को ही इला की भूमिका में मंच पर उतारा । यह पात्रों के अभाव के कारण नहीं बल्कि श्रद्धा के मन की कसक यहां इला के रूप में खत्म हुई और वह श्रद्धा का प्रतिरूप बनकर मंच पर उतरी । एक तरह से देखा जाए तो एक ही स्त्री पात्र को दोहराने का कारण यही है कि स्त्रियों की पराधीनता भी एक–सी है और स्वाधीनता की इच्छाएं भी समान हैं । यह दृश्य बहुत कौशल के साथ मंच पर रचा गया । —इसी किताब से

You might also like

Reviews

No Reviews found.