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Hindi Sahitya Ke Itihas Ki Samasyen

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2025
978-93-48650-41-2

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इस पुस्तक में आदिकाल से लेकर स्वातंत्र्योत्तर काल तक के हिंदी साहित्य के इतिहास की समस्याओं का विवेचन है। इन समस्याओं को लेकर इधर हिंदी जगत् में काफी बहस चल रही है और यह बहस मार्क्सवादी और गैर-मार्क्सवादी लेखकों के बीच उतनी नहीं जितनी स्वयं मार्क्सवादी लेखकों के बीच है। इस बहस ने कुछ समस्याओं को समझने और सुलझाने में हमारी मदद की है तो कुछ नई समस्याएँ उपस्थित भी की हैं। इससे न केवल इतिहास के प्रति हमारी जागरूकता बढ़ी है बल्कि हमारा इतिहास-विवेक और-सुसंगत और गहरा हुआ है। सच पूछिए तो सम्यक् इतिहास-बोय के निर्माण का रास्ता इस बहस के बीच से होकर जाता है। फिलहाल, इस दिशा में यह मेरा पहला विनम्र प्रयास है। इस विषय की ओर मेरा झुकाव पहले से था इसीलिए मैंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की पी-एच. डी. उपाधि के लिए स्वीकृत अपने शोधप्रबंध का यह शीर्षक चुना था-मार्क्सवादी इतिहास दर्शन के परिप्रेक्ष्य में हिंदी साहित्य के इतिहास की रूपरेखा । शोधकार्य के दौरान इस विषय का विशेष अध्ययन करने का मुझे अवसर मिला। शोधनिर्देशक गुरुवर डॉ. शिवप्रसाद सिंह ने जो आकाशधर्मा गुरु-सुलभ उदारता बरती वह वर्तमान हिंदी जगत् में दुर्लभ है। मैं उनके प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता है।

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