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Kahani Ka Yatharth
कवि, कथाकार, आलोचक तरसेम गुजराल बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न लेखक हैं । ‘कहानी का यथार्थ’ किताब में उन्होंने 1975 से 2000 तक के कहानीकारों की कहानियों का गंभीर अध्ययन कर मूल्यांकन किया है । यह लगभग पच्चीस वर्ष का समय अनेक तरह की सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक उथल–पुथल का रहा है । हिंदी कहानी आलोचना के क्षेत्र में इस तरह से काम या बहुत कम हुआ है या हुआ ही नहीं । एक तो कहानी आलोचना की तरफ ज्यादा बड़े आलोचक कम ही आते हैं, दूसरे यथार्थ को लेकर विभ्रम की स्थिति में वैचारिक पक्षधरता सीमित रह गयी मालूम होती है । तरसेम गुजराल किसी कहानीकार की एक–दो कहानियां पढ़ कर अपना काम सरलीकृत रूप से समाप्त नहीं करते । कहानीकार के रचनाकर्म को गहरे से जानने–समझने के लिए कम अज़कम दस–पंद्रह कहानियों का अध्ययन करते हैं ताकि कहानीकार का बुनियादी सामाजिक राजनीतिक दृष्टिकोण अधिक स्पष्ट हो सके । आलोचना को उन्होंने रचनात्मक कार्य का एक अंग ही माना है । इन कहानीकारों में उदय प्रकाश, संजीव तो काफी चर्चित नाम हैं, हरियशराय, शंकर, उतने चर्चित नहीं हैं । नर्मदेश्वर, महेश कटारे, अभय की शायद ही कहानी पर लिखे गये किसी भी आलेख में चर्चा हुई हो । जबकि उनकी कहानियों में यथार्थ की पकड़ बनी रही है । 1975 से 2000 की कालावधि में उभर कर आये कहानीकारांे की कहानियां तो जी जान से लिखी गई है, परंतु हिंदी कहानी आलोचक यही चाहता रहा है कि कहीं अलादीन का चिराग मिल जाये, जो कुछ अच्छी कहानियों के नाम बता दे ताकि चर्चा की जा सके । इतनी कहानियां छपती हैं, बाबा कौन पढ़े इतनी कहानियां । फिर नोटस तैयार करता फिरे । ‘कहानी का यथार्थ’ किताब इस तरह के सरलीकरण से दूर है ।
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