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Karbala : (Ek Prasangik Adhayan)

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2024
978-93-95226-73-8

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प्रेमचन्द जी साहित्य जगत में इतने प्रसिद्ध हैं क्योंकि उन्होंने हिन्दी कहानी व उपन्यास की परम्परा में इस प्रकार विकास किया जिससे पूरी सदी को साहित्य का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की। तीन नाटकों की उन्होंने सन् 1923 में 'संग्राम', सन् 1924 में 'कर्बला' तथा सन् 1933 में 'प्रेम की वेदी' की रचना की। 'दुराशा' उनका एक प्रख्यात प्रहसन है। इसके अतिरिक्त गाल्सवर्दी के नाटकों का अनुवाद है- 'सृष्टि', 'न्याय', 'चाँदी की डिबिया', 'हरताल' इत्यादि। प्रख्यात नाटक 'कर्बला' की विषयवस्तु पर उन्होंने निबन्ध भी लिखा था जिसका शीर्षक था- 'शहीद-ए-आजम'। उनका सर्वश्रेष्ठ उपन्यास 'गोदान' अर्थात् गाय का उपहार सन् 1936 में की गई अन्तिम पूर्ण रचना है। इस उपन्यास का नायक होरी एक गरीब किसान है, जो ग्रामीण भारत में धन और प्रतिष्ठा का प्रतीक गाय के लिए बेताब है।

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