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Kunwar Narayan Sanchayan
भारतीय साहित्य के परिदृश्य में हिन्दी साहित्य की विश्वसनीय उपस्थिति दर्ज’ कराने वाले विरल साधक –सर्जक, अनुसर्जक व चिन्तक हैं कुँवर नारायण । वे हमारे आधुनिक समय के उन अप्रतिम सर्जकों में से हैं, जो अपनी साफ’–सुथरी रचनात्मकता और संयमित अभिव्यक्ति के लिए जाने जाते हैं । उनके समावेशी सृजन विविधता में है, बहुस्तरीयता है । उनकी सारगर्भित रचनात्मकता में जहाँ एक ओर बृहत्तर मानवीय सन्दर्भ व उदात्त सांस्कृतिक चेतना घनीभूत होती है, वहीं दूसरी ओर निरन्तर विकसित होते सरोकारों और विचारशील भाषा को भी लक्षित किया जा सकता है । इस दृष्टि से कुँवर नारायण भारतीय चिन्तन परम्परा के एक अद्वितीय अन्वेषी सर्जक ठहरते हैं । कुँवर नारायण विरल सौन्दर्यबोध से युक्त एक असाधारण चिन्तक भी हैं । उनकी सजग और सचे साहित्यिक – सामाजिक – राजनीतिक दृष्टि समकालीन युग, यथार्थ व विडम्बनाओं पर आज भी उतनी ही गहरी और प्रासंगिक है, जितनी वह वर्षों पहले थी । अपने समय को बृहत्तर परिप्रेक्ष्य में निरूपित करने वाला उनका साहित्य एक चेतस–चैकस अन्तर्मन की गहरी चिन्तन–दृष्टि व सुरुचिसम्पन्न अनुभूति का उदात्त प्रतिफल है । उन्होंने लेखन की शुरुआत कविता से की : और इसी के समानान्तर वे आलोचनात्मक व चिन्तनपरक लेख, कहानियाँ, समीक्षा–संस्मरण आदि के अलावा सिनेमा, संगीत तथा अन्य कलाओं पर भी निरन्तर लिखते रहे । कुँवर नारायण का सृजन सरोकार व अनुभव–जगत बहुत ही व्यापक है । प्रस्तुत संचयिता में उनकी निजी, कुछ सीमा तक अनोखी रचना–दृष्टि एवं सरोकार की औदात्य–छटा उद्भासित हुई है । —‘पुरोवाक्’ से
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