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Madhya Asia Ka Itihas ( 2 Vol Set)

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2024
978-81-19141-36-4

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भारत के इतिहास की जगह मध्य एशिया के इतिहास पर मैंने क्यों कलम उठाई, यह प्रश्न हो सकता है । उत्तर आसान है । भारत के इतिहास पर लिखनेवाले बहुत हैं । जिसका अभाव है, उसकी पूर्ति करना जरूरी था, यही विचार इस प्रयास का कारण हुआ । अपनी यात्राओं में मैं रूस और मध्य एशिया के सम्पर्क में आया, उनके ऊपर कितनी ही पुस्तकें लिखीं और अनुवादित कीं । उसी समय विचार आया, आधुनिक ऐतिहासिक घटनाओं को पिछले इतिहास की पृष्ठभूमि में देखना चाहिए । इस तरफ आगे बढ़ा, तो यह भी मालूम हुआ मध्य एशिया का इतिहास हमारे देश के इतिहास से बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध रखता है । द्रविड़़़ (फिनो–द्रविड़़) जातिµजिसने मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के भव्य नगर और यशस्वी सिन्धु–सभ्यता प्रदान कीµका सम्बन्ध मध्य एशिया से भी था । हाल के पुरातात्त्विक अनुसन्धान बतलाते हैं कि आर्यों का सम्पर्क द्रविड़़ जाति से सबसे पहले सिन्धु–उपत्यका में नहीं, बल्कि ख्वारेज्म में हुआ था । वहाँ पराजित करके उनका स्थान ले आर्य भारत की ओर बढ़े । उनका बढ़ाव पिछली विजित भूमि को बिना छोड़े आगे की तरफ होता रहा, इसलिए भारतीय आर्यों की परम्परा में अपने पुराने छोड़े हुए स्थान का उल्लेख नहीं पाया जाता । आर्यों की अनेक लहरों के बाद ग्रीक लोगों ने भी बाख्त्रिया से आकर भारत के कुछ भाग पर शासन किया । शक–कुषाण भी वहाँ से ही होकर आये । तथाकथित हूणµहेफतालµभी मध्य एशिया से भारत की ओर बढ़े । तुर्क और इस्लाम भी वहाँ से चलकर भारत आया । इन शासकों और उनकी जातियों के इतिहास का एक भाग मध्य एशिया में पड़ा रहा, जिसे जाने बिना हम अपने इतिहास को समझने में गलती कर बैठते हैं । इस दृष्टि से भी मुझे इस पुस्तक को लिखने की प्रेरणा मिली । —राहुल सांकृत्यायन

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