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Mera Jeevan Sangharsh
क्यों और किसलिए? मेरा स्वभाव ही कुछ ऐसा है कि अपना परिचय सुनने में शर्म-सी लगती है। अगर स्वयं ही यह काम करना पड़े, तब तो और भी गजब! तब तो जी चाहता है कहाँ चला जाऊँ, छिप जाऊँ, ताकि परिचय चाहने वालों से भेंट ही न हो। यही कारण है, दो वर्ष पहले तक शायद ही किसी को साधारणतः मेरी जीवनी विदित हो । सच तो यह है कि मेरी मौत के बाद ही मेरे सम्बन्ध की प्रारम्भिक अज्ञात बातें लोग जानें, यही मेरा विचार सदा से रहा है। आखिर, सार्वजनिक कार्य-क्षेत्र में जब से मैं आया और मेरा सम्बन्ध इससे दृढ़ हुआ तब से आज तक का परिचय क्या पर्याप्त नहीं है? यही तो असली परिचय है, जिसे लोग न सिर्फ कामों से ही पाते हैं, वरन् जिसका रूप निरन्तर के संसर्ग और व्यवहार की कसौटी पर कस कर ठीक-ठीक समझ और देख सकते हैं। उचित भी तो यही है। जो भाग अँधेरे में है, उसे देखने की नाहक कोशिश से तो अच्छा है कि बराबर उजाले में और हजारों आँखों के सामने रहने वाला ही भाग गौर से देखा जाय। इसमें धोखे की गुंजाइश भी नहीं होती। लेकिन सार्वजनिक रूप से अप्रकट रूप में तो सबकुछ हो सकता है। इसी प्रकार की परोक्ष जीवनसम्बन्धी बातों के करते न जाने कितनों ने अनजान लोगों को ठगा है और इस तरह अपने आप को उनकी नजरों में औलिया, महात्मा, नेता और अलौकिक पुरुष सिद्ध करने की सफल, निष्फल-कोशिश की है। असल में जनसाधारण की आँखों के सामने किये जाने वाले व्यवहार और उनकी सेवा के लिए किये जाने वाले काम, त्याग और बलिदान आईने की तरह किसी भी पुरुष के गुप्त और अप्रत्यक्ष जीवन का प्रतिविम्ब प्रकाशित कर देते हैं। और कोई भी चतुर आदमी इन्हीं कामों से उस अप्रत्यक्ष जीवनांश का असली आभास पा सकता है। इसीलिए हमारी नजरें किसी भी आदमी के जीवन के उसी अंश पर रहनी चाहिए, जो प्रत्यक्ष है और जिससे रोज साबका पड़ता है। इस प्रकार जीवन के अप्रत्यक्ष का पूर्ण आभास मिल जाने पर समय पाकर उसका पूरा विवरण भी मिल सकता है। इन्हीं विचारों ने मुझे जीवनी लिखने या बताने के काम से बराबर विरागी रखा
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