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Namvar Vichar Kosh

(4.00) 1 Review(s) 
2015
978-93-81272-95-4

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नामवर जी जीवन भर निरन्तर स्वाध्यायरत रहे हैं, हिन्दी में कम विद्वान होंगे जो इतने बहुपठित हैं। वे समकालीन हलचलों और प्रवृत्तियों के प्रति अत्यन्त सजग और सतर्क रहे हैं। इसलिए प्राचीन से लगा कर अद्यतन और राष्ट्रीय से लगा कर अन्तरराष्ट्रीय साहित्य और सोच की जानकारी उन्हें है, इसी से वे आज तक कभी अपने अतीत नहीं हुए। विचार-कोश से प्रतीत हो सकता है कि नामवर ने साहित्य पर ही नहीं; समय, समाज और विविध विषयों पर विचार प्रकट किये हैं। उनमें मौलिक विश्लेषण और चिन्तन की क्षमता है जिससे उनके विचार किसी की उतरन नहीं लगते। इतना ही नहीं आत्म-निर्मित अभिव्यक्ति-शिल्प और विचार प्रकट करने का साहस या दुस्साहस भी उनमें है। इससे होने वाले जोखिम की वे चिन्ता नहीं करते। इसलिए कई बार अपनी ही विचारधारा के निशाने पर भी रहे हैं। अगर वे द्विवेदी युग के बारे में यह कहने का साहस करते हैं कि—‘द्विवेदी युग का काव्य एक प्रकार से अनाथालय प्रतीत होता है, जिसमें नारी को आश्रय देने के साथ ही वंदिनी भी बना दिया गया और इस तरह वह अपने सहज जीवन से विच्छिन्न कर दी गयी।’ तो यह भी कि ‘टुटपूँजिया मध्यवर्गीय लेखकों के मन का अपराध-बोध उन्हें सर्वहारा के आदर्शीकरण की ओर प्रेरित करता है।’ (1974) और यह भी कि ‘युवा लेखक सामान्यत: वामपन्थी राजनीति के हिमायती हैं और कुछ तो किसी-किसी दल से सम्बद्ध भी हैं, लेकिन अधिकांश में प्राक् प्रतिबद्धता (प्री कमिटमेंट) है, उन्होंने अप्रतिबद्धता (नान-कमिटमेंट) का अन्तिम निर्णय नहीं कर लिया है।’ ऐसी सब ची$जें एक जगह पाकर लेखक के विचार और व्यक्तित्व को समझा जा सकता है।

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Reviews
यह किताब हिंदी साहित्य जगत के प्रसिद्ध विद्वान नामवर सिंह के विचारों का संकलन है। इसमें साहित्य, संस्कृति, समाज और राजनीति जैसे विषयों पर उनके गहन चिंतन को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह जटिल विषयों को सरल भाषा में समझाती है।नामवर सिंह के विचार पढ़ने के बाद समाज और साहित्य को देखने का नजरिया बदल जाता है। किताब का संकलन बहुत अच्छा है, जिससे पाठक को नामवर सिंह के विभिन्न विचारों का सार मिल जाता है।
Sushil Ram, Jaunpur