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Natya Mulyankan Mala : Natakkar Asgar Wajahat
असगर वजाहत हिंदी साहित्य की उस परम्परा के वारिस और वाहक हैं जिनके लिए अखन एक सामाजिक कर्म है, वे इसे जिम्मेदारी समझते हैं और उनके लिए यह पूरावक्ती काम है। इस पूरेवक्ती काम को करते हुए वे यह भी नहीं भूलते कि लेखन अंतती कला है और इसका वास्तविक मूल्यांकन कला की कसौटियों पर ही होगा। सत्तर के दशक के जनवादी उभार ने उनके लेखन को बहुआयामी बनाया। उन्होंने कहानिकार नाटक, नुक्कड़ नाटक, निबंध, यात्रा आख्यान, उपन्यास यानी गद्य की सभी विद्याओं में लिखना जरूरी समझा और अब लगभग पचास साल बाद उनके लेखन का मूल्यांकन करते हुए समझ आता है कि हमारे सांस्कृतिक परिदृश्य को इस लेखन ने किस तरह समृद्ध किया है और विवेकवान बनाया है। असगर वजाहत के नाटक इस सम्बन्ध में सबसे महत्त्वपूर्ण सिद्ध होते हैं। इस प्रसंग में ऊना सबसे प्रसिद्ध नाटक 'जिन लाहौर नई वेख्या' ही नहीं अपितु अल्पचर्चित नाटक भी महत्त्वपूर्ण हैं। किसी भी रचनाकार का महत्त्व उसकी ऐसी रचनाओं से प्रकट होता है जिनसे उस विघा विशेष को नयी गति मिले, नया स्वर मिले और विधा के रूप को वह ताज़गी देने वाली हो। असगर वजाहत केवल इन दो विधाओं में ही नहीं अन्य विधाओं में भी यह मुश्किल काम कर सके हैं। 'केक' इसलिए महत्त्वपूर्ण कहानी नहीं है कि वह व्यंग्य की तुर्शी में पाठक को बांधती है अपितु वह एक युग की विफलता के त्रास का मार्मिक उद्घाटन करती है और इसके लिए असगर वजाहत किसी खलनायक को सामनेलाकर खड़ा नहीं करते। ठीक इसी तरह का काम उनका नाटक 'इन्ना की आवाज़' करता है। आपातकाल की छाया में लिखा गया यह नाटक सत्ता की क्रूरता की कहानी कहता है
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