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Nirala : Ram Ki Shakti-Puja
निराला के अनन्य सखा आचार्य शिवपूजन सहाय ने बड़ी वेदना से लिखा था कि यह हमारा सौभाग्य है कि निराला जी हिन्दी में हुए, लेकिन उनके लिए यह दुर्भाग्य रहा कि वे हिन्दी भाषा में हुए । आज के निहायत आत्ममुग्ध और प्रवंचनापूर्ण समय में निराला की सरकारी और गैरसरकारी दोनों स्तरों पर उनकी घनघोर उपेक्षा और उदासीनता देखकर शिवजी के उक्त कथन का मर्म कहीं और गहरे उद्वेलित कर रहा है । युगों में कभी निराला जैसे कवि पैदा होते हैं जो युगों तक अपनी भाषा, समाज और राष्ट्र को गौरवान्वित करते हैं । ऐसे महान् कवि के प्रति हमारा सलूक–वस्तुत: हमारे सांस्कृतिक और बौद्धिक पतन का ही प्रत्यक्ष प्रमाण है । अगर वे यूरोप की किसी भी विकसित भाषा में हुए होते तो उनको पूरी दुनिया में वह सम्मान मिलता, जिसके वे सचमुच के हकदार थे । शायद ही कोई सांस्कृतिक रूप से सम्पन्न कौम इतनी कृतघ्न होगी! पता नहीं अपने सांस्कृतिक शिखरों की ऐसी अवहेलना हमें अभी किस अधोगति तक ले जायेगी ?
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