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Nishphal Prem : Shakspeare
निष्फल प्रेम नामक रचना को शेक्सपियर ने कॉमेडी (सुखान्त) नाटक के रूप में लिखा था। इसका कारण था कि इसमें व्यंग्य और हास्य की प्रधानता है, किन्तु वैसे यह सुखान्त नाटक नहीं है। यह तो गीतात्मक फन्तासिया माना गया है। इस नाटक का रचनाकाल सन्देह से पूर्ण है। 1588 से 1596 के बीच यह किसी समय लिखा गया, किन्तु अपनी शैली के दृष्टिकोण के आधार पर यह शेक्सपियर की एक प्रारम्भिक रचना है। इसमें रीतिकाव्य की भाँति शब्द-चमत्कार इतना अधिक है कि भावपक्ष के दृष्टिकोण से यह एक बहुत ही साधारण नाटक है। इसमें मज़ाक से अधिक व्यंग्य है और अन्त में हमें एक प्रकार का नीतिपरक परिणाम प्राप्त होता है, किन्तु पात्र कोई भी हाथ नहीं आता। जिस उदात्त भावगरिमा का नाम शेक्सपियर है, वह तो यहाँ नहीं है, किन्तु एक बात अवश्य यहाँ भी है कि स्त्री और पुरुष के पारस्परिक सम्बन्धों की समानता पर यहाँ लेखक ने ज़ोर दिया है। इसलिए यह नाटक अपना महत्त्व रखता है। शेक्सपियर ने कल्पनालोक को व्यापक प्रसार देने की चेष्टा की है, किन्तु वह उसमें सफल नहीं हो सका है, क्योंकि उसने जिस शैली को पकड़ा है, वह बहुत पैनी नहीं है, न गहरी। 'एक स्वप्न' में उसने जो सौन्दर्य दिया है, वह यहाँ नहीं है, न है यहाँ वह सफल प्रकृति-चित्रण ही, जो हमें जैसा तुम चाहो में मिल जाता है।
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