- New product
Parde Ke Piche
फ़िल्म बनाना एक सामूहिक कर्म है। इसमें निर्देशक, स्क्रीनप्ले राइटर, अभिनेता, सिनेमाटोग्राफर, एडिटर कई विशेषज्ञ की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। फ़िल्म बना लेना ही काफ़ी नहीं है। इसका दर्शकों तक पहुँचना आवश्यक है। यह दायित्व वितरक निभाते हैं। फ़िल्म बनाना काफी खर्चीला कार्य है। फ़िल्म बन नहीं सकती है, यदि उसमें खर्च होने वाली रकम का इंतजाम न हो सके। इसके लिए कभी-कभी निर्देशक की पत्नी को अपने गहने-जेवर गिरवी रखने-बेचने पड़ते हैं। फ़िल्म बनाने के लिए फ़ाइनेंसर एक प्रमुख घटक है। और एक काम होना है, सेंसर सार्टिफ़िकेट मिलना । फ़िल्म की सफलता के कई तत्व होते हैं, नरेशन उनमें से एक है। संवाद कहानी को आगे बढ़ाने वाले एवं चरित्र को खोलने वाले होने से सफलता की संभावना बढ़ जाती है। प्रभावपूर्ण, अर्थ भरे संवाद, पंच लाइन, कहानी के अनुरूप संवाद की गति होनी आवश्यक है। जब हम फ़िल्मों की बात करते हैं कदाचित स्क्रीनप्ले राइटर अथवा सिनेमाटोग्राफ़र की बात करते हैं। ये सदा परदे के पीछे रह जाते हैं। इस पुस्तक 'परदे के पीछे सिने-जगत के जादुई हाथ' में कुछ स्क्रीनप्ले राइटर और कुछ सिनेमाटोग्राफ़र को सामने लाने का प्रयास किया है।
You might also like
No Reviews found.