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Pather Panchali
‘पथेर पाँचाली’ विभूतिभूषण बंद्योपाध्याय का पहला ही उपन्यास है और पहली ही कृति से प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँचने के ऐसे उदाहरण विरल हैं । ‘पथेर पाँचाली’ में प्रकृति जिस रूप में आयी है, वह बाँग्ला साहित्य में अभूतपूर्व है । इसमें अनजाने पेड़–पौधों, फल–फूलों तक को अद्भुत महत्व दिया गया है । दो बालक–बालिकाओं–दुर्गा और अपू की आँखों से प्रकृति का अपरूप रूप इसमें दिखता है । उपन्यास में हालाँकि प्रकृति का संहारक रूप भी दिखायी पड़ा है, जब कई दिनों तक लगातार होती वर्षा और तेज आँधी सर्वजया को आतंकित कर देती है, और जिसका अंत दुर्गा की मृत्यु से होता है । ‘पथेर पाँचाली’ में विभूतिभूषण का सिर्फ प्रकृति चित्रण ही आकर्षित नहीं करता, इसमें बाल मनोविज्ञान का चित्रण भी उतना ही दर्शनीय है । खासकर अपू के बाल मन के चित्रण में विभूतिभूषण का लेखन कमाल का है ।
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