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Phanishwarnath Renu : Ek Anterpath
'फणीश्वरनाथ रेणु : एक अन्तर्पाठ' वरिष्ठ आलोचक अरविन्द कुमार की रेणु-साहित्य पर केंद्रित ऐसी पुस्तक है, जिसमें रेणु के कृतित्व को उसकी बहुआयामिता में देखने-परखने की एक गंभीर पहल की गई है। फणीश्वरनाथ रेणु हिन्दी साहित्य के एक ऐसे अद्भुत लेखक हैं, जिन्हें हिन्दी आलोचना की दुनिया ने अरसे तक स्वीकार और नकार की मध्यरेखा पर खड़ा रखा। आलोचना की दुनिया में उनका प्रवेश उनकी लोकप्रियता ने संभव किया, जिससे उनके साहित्य पर गहन विचार-विमर्श का मार्ग प्रशस्त हुआ। अरविन्द कुमार की यह पुस्तक उसी दिशा में एक ज़रूरी हस्तक्षेप है। फणीश्वरनाथ रेणु का रचना-व्यक्तित्व इतना संश्लिष्ट और विशिष्ट है कि किन्ही प्रचलित टूल्स के ज़रिये उसकी पहचान करना संभव नहीं। उनकी कहानियां हों, उपन्यास या कि रिपोर्ताज, उनमें रेणु का जीवन-दर्शन और जीवन-जगत इस कदर अनुस्यूत है कि उन्हें अलगाकर देखने से उनके रचना-प्रदेश में प्रवेश सम्भव नहीं। रेणु की कहानियां उस समाज से आती हैं जो प्रायः अल्पज्ञात है। उनकी कहानियों में इसी अल्पज्ञात समाज के वे मामूली लोग हैं जिनके सुख-दुख को दर्ज करते हुए रेणु उन्हीं में से एक हो जाते हैं। इस तरह रेणु एक ऐसे लेखक हैं, जिसकी सामाजिक-राजनीतिक प्रतिबद्धता अपने लोक के यथार्थ में निहित है। रेणु एक एक्टिविस्ट लेखक हैं, इस बाबत वह स्वयं कहते हैं, 'मैं आंदोलन में नहीं, आंदोलन मुझमें है।' आशय यह कि रेणु अपने समय की हर हलचल में उपस्थित हैं और यही उनकी रचनात्मक शक्ति है। राष्ट्रीय आंदोलन से लेकर स्वतंत्रता मिलने के बाद के तमाम बदलावों,
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