• New product

Phir Chal Diye

(0.00) 0 Review(s) 
2021
978-93-87145-97-9

Select Book Type

Earn 3 reward points on purchase of this book.
In stock

घुमक्कड़ी का कीड़ा बचपन से ही मुझे $खासा परेशान करता रहा है। जब मैं छोटा था तो किन्ही पंडित जी ने मेरी जन्म कुंडली देखकर कहा था कि जातक के पैर में शनि का चक्कर है इसलिए ये हमेशा घूमता ही रहेगा। मुझे लगता है कि वैसा ही चक्कर जरूर बहुत घुमक्कड़ों के पैरों में होता होगा। कहीं भी घूमने की आज़ादी का पहला अहसास मुझे उस दिन हुआ जिस दिन आठ नौ बरस की उम्र में नयी नयी साइकिल चलानी सीख कर मैंने पहली बार अकेले ही गांव से निकलने वाली पक्की सड़क पर गिरते-पड़ते साइकिल चलाई। मेरा मन एक ऐसे अवर्चनीय आनन्द से भर गया जो उससे पहले कभी नही हुआ था। मुझे लगा कि अरे मैं तो इस तरह अकेले कहीं भी जा सकता हूँ। गाँव में भालू बंदर का खेल दिखाने वाले, तमाशे वाले और मदारी जब भी आते थे तो तमाशा $खत्म होने के बाद जब वे दूसरे गाँव की तर$फ चलते थे तो मैं भी उनके पीछे-पीछे हो लेता था। भूल जाता था कि माँ ने बाज़ार से कुछ सामान लाने की जि़म्मेदारी दी थी। धूल मिट्टी में लटापटा जब शाम को घर लौटता था तो माँ की शिकायत पर पिता की पिटाई इंतज़ार कर रही होती थी। बावजूद माँ की रोज़मर्रा की शिकायतों पर पिता की पिटाइयों के इधर उधर भटकने का जो चस्का लगा वो आज तलक बदस्तूर जारी है।

You might also like

Reviews

No Reviews found.