• New product

Pratistha Path

(0.00) 0 Review(s) 
2023
978-81-963989-4-1

Select Book Type

Earn 5 reward points on purchase of this book.
In stock

आज वीरवार था। सोमवार को वह घर से आया था। इन चार दिनों के अन्दर ही उसे क्या हो गया। कुछ न कुछ उपाय शीघ्र करने की गरज़ से उसने शिखर को कक्षा से बुला लिया। उसे पंडित मिथिलानन्द वैद्य के पास भेजा। स्वयं तुरन्त घर के लिए चल पड़ा। पंडित जी साथ नहीं चल सकते थे। उनके पांव में मोच आई थी। पाँव सूज गया था। शिखर को वैद्य सम्पदानन्द के पास भेजने के बाद वह स्वयं घर के लिए चल पड़ा। घर पहुँचा तो पाया कि स्थिति गम्भीर बन चुकी है। 8 फरवरी को बच्ची को निमोनिया हो गया था। शाम के समय उसका शरीर सुन्न पड़ गया था। उसे यह सारी जानकारी दी गई। उसकी पत्नी शारदा काढ़ा बनाने किचन में गई थी। इस समय बच्ची पड़ोसी नरदास की गोद में अचेतावस्था में थी। मां जी मायके गई हुई थी। वातावरण गम्भीर बना हुआ था। शाम हो चुकी थी । अन्धेरा गहन होता जा रहा था। सभी लोग व्यग्रतापूर्वक शिखर की प्रतीक्षा कर रहे थे। हर आहट पर कान खड़े हो जाते थे। उनकी धड़कनें एक-दूसरे को सुनाई पड़ रही थीं। सात बज कर 15 मिनट के लगभग शिखर आया । किन्तु वैद्य नहीं आया था। मुंशी को मां को बुलाने उनके मायके भेजा गया। बहादुर को दूसरे वैद्य को लाने दूसरी जगह भेजा गया। मां रात 10:30 बजे और वैद्य 11:30 बजे पहुँचे ।

You might also like

Reviews

No Reviews found.