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Premchand Ka Sampuran Baal Sahitya

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2022
978-93-929380-66-2

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‘‘बालक को प्रधानत: ऐसी शिक्षा देनी चाहिए कि वह जीवन में अपनी रक्षा आप कर सके । –––आज किसी बाहरी सत्ता की आज्ञाओं को मानने की शिक्षा देना बालकों की सबसे बड़ी जरूरत की तरफ से आँखें बन्द कर लेना है । युवकों के सामने आज जो परिस्थिति है उसमें अदब और नम्रता का इतना महत्त्व नहीं है, जितना व्यक्तिगत विचारों और कामों की स्वाधीनता का । इस नयी शिक्षा का आशय क्या है ? आज्ञा–पालन हमारे जीवन का एक अंग है और हमेशा रहेगा । अगर हर एक आदमी अपने मन की करने लगे तो समाज का शीराजा बिखर जाएगा । अवश्य हर एक घर में जीवन के इस मौलिक तत्त्व की रक्षा होनी चाहिए, लेकिन इसके साथ ही माता–पिता की यह कोशिश होनी चाहिए कि उनके बालक उन्हें पत्थर की मूर्ति या पहेली न समझें । चतुर माता–पिता बालकों के प्रति अपने व्यवहार को जितना स्वाभाविक बना सकें, उतना बनाना चाहिए, ताकि बालक के जीवन का उद्देश्य कार्य–क्षेत्र में आना है, केवल आज्ञा मानना नहीं । वास्तव में जो बालक इस तरह की शिक्षा पाते हैं, उनमें से आत्मविश्वास का लोप हो जाता है । वे हमेशा किसी की आज्ञा का इन्तजार करते हैं, हम समझते हैं कि आज कोई बाप अपने लड़के को ऐसी आदत डालने वाली शिक्षा न देगा ।

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