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Premchand Sahitya Rachnawali (22 Vol.)

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2024

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‘प्रेमचन्द साहित्य रचनावली’ की रूपरेखा बनाते समय काफ’ी गम्भीरता से विचार किया गया । मैंने अपने अग्रज तथा प्रतिष्ठित लेखक-आलोचक–प्रोफ़ेसर सर्वश्री प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित तथा प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी से रचनावली की रूपरेखा पर बातचीत की और उन्होंने उससे पूर्ण सन्तुष्टि व्यक्त की । इससे पूर्व प्रकाशित ‘प्रेमचन्द रचनावली’ में बीस खंड थे, पर इसे नया रूप देते हुए प्रेमचन्द के सम्पूर्ण साहित्यिक वांग्मय को बाईस खंडों में विभक्त किया गया और सर्वथा नयी सामग्री जोड़ी गयी । प्रेमचन्द का रचनाकाल उनकी पहली उर्दू रचना ‘ओलिवर क्रामवेल’ लेख ‘आवाज“–ए–ख़ल्क साप्ताहिक उर्दू अख़बार के 1 मई, 1903 के अंक में प्रकाशित हुआ था और इसी अख़बार के 8 अक्टूबर, 1903 के अंक में उनके पहले उर्दू उपन्यास ‘असरारे मआबिद’ की पहली किस्त छपी थी और उनकी जीवन की अन्तिम रचनाएँ ‘महाजनी सभ्यता’ लेख तथा ‘रहस्य’ कहानी ‘हंस’, सितम्बर, 1936 के अंक में प्रकाशित हुई और यह अंक भी उनके जीवन का अन्तिम अंक था और 8 अक्टूबर, 1936 को उनका देहावसान हो गया । प्रेमचन्द ने इन 33 वर्षों के रचनाकार में लगभग दस हज़ार से अधिक पृष्ठों का साहित्य लिखा और कविता के अलावा प्राय: गद्य की अधिकांश विधाओं में लिखा, जिनमें से उपन्यास, कहानी, लघुकथा, नाटक, लेख, सम्पादकीय, पुस्तक समीक्षा, संस्मरण, यात्रा–वृत्तान्त, भूमिका, बाल–साहित्य, अनुवाद, पत्र आदि विधाओं में उन्होंने अपनी रचनात्मकता का उपयोग किया । प्रेमचन्द की रचनात्मकता की यह विशेषता थी कि वे रचना के क्रम में प्राय: विभिन्न विधाओं का प्रयोग करते हैं, लेख के बाद उपन्यास, फिर पुस्तक समीक्षा, फिर कहानी और इसी प्रकार वे जीवन के अन्त तक लिखते रहे । उनके जीवनकाल में ‘हंस’ के अंतिम अंक में भी लेख और कहानी एक साथ प्रकाशित हुई और वे कहानी और उपन्यास को भी एक साथ लिखते रहे । वे अपनी इस रचनात्मक प्रतिभा के कारण व्यापक और विभिन्न विधाओं में विपुल साहित्य की रचना कर सके, जो उस युग में और उसके बाद के समय में दुर्लभ ही दिखाई देता है । प्रेमचन्द के इस व्यापक तथा अनेक विधाओं में प्रकाशित साहित्य को इन 22 खंडों में विभक्त करके प्रस्तुत किया गया है और प्राय: इसका ध्यान रखा गया है कि प्रत्येक विधा का तथा प्रत्येक खंड में जो साहित्य दिया गया है वह कार्यक्रमानुसार हो, जिससे समय के प्रवाह के साथ उनकी रचनात्मकता का विकास और सौन्दर्य एवं संवेदना और चिन्तन की निरन्तर गतिशीलता तथा उनकी प्रतिबद्धताओं की प्रामाणिक जानकारी मिल सके ।

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