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Samkaleen Hindi Sahitya Aur Nav Vimarsh

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2022
978-93-95226-04-2

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इक्कीसवीं सदी में समाज के सभी हशियेकृत समूहों को अपनी अस्मिता, अपने अधिकार से बेदखल होना पड़ा । साहित्य के विभिन्न विधाओं के माध्यम से इन वंचित वर्गों के प्रति मुख्य धारा का ध्यान आकृष्ट होने लगे । समकालीन साहित्यकार गति अवरोधक तत्वों के प्रति सदैव विद्रोही और अपनी रचनाओं में नवीन चेतना जगा रहे हैं । वर्त्तमान दौर के साहित्य के समकालीन विमर्श उन सभी वंचितों के अधिकारों के प्रति सजगता और चेतना जगाने का प्रयास कर रहे हैं । आज अस्तित्वमूलक विमर्श स्त्री , दलित, आदिवासी, किन्नर, बालक, वृद्ध, किसान, पर्यावरण, युवा आदि को अभिव्यक्ति देने के तीव्र प्रयास में संलग्न हैं । स्त्री विमर्श में स्त्री के प्रति जीवन मूल्यों की दोयम दर्जे की संवेदना से विकसित मानसिकता रेखांकित करने का प्रयास हुआ है । वैश्वीकरण द्वारा मीडिया की भाषा और संचार अभ्यास में आये बदलाव को मीडिया विमर्श केन्द्रित करता है । किन्नर विमर्श में उनकी उपेक्षा, लिंग भेद की समस्याओं को अभिव्यक्त किया है । किन्नर की वेदना, पीड़ा, कुंठा के रूप में इनकी संकट साहित्यिक अभिव्यक्ति पा रही है । आदिवासी विमर्श में सभ्यता, औद्योगीकरण एवं विकास के नाम पर जल, जंगल ज़मीन के विदोहन के विविध रूपों, विस्थापन की समस्याओं को इंगित किया हैं ।

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