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Smrityalochan
स्मृत्यालोचन साहित्य की प्रोटीन विधा है । इसमें संस्मरण और आलोचन दोनों का सुमेल है, जिसके मूल में स्मृति की सक्रियता है । यह पुस्तक हिन्दी में इस विधा की पहली पुस्तक है । स्मृत्यालोचन में घटनाएँ होती है, पारस्परिक वार्ताएँ होती है । लेखक और रचनाकारों के बीच अब तक अनुद्घाटित प्रसंग होते हैं, उनके व्यक्तित्व के प्रिय और अप्रिय पर्यवेक्षित अनुषंग होते हैं । उनकी रचनाओं का अब तक का लेखकीय पर्यवलोकन और मूल्याकन होता है । इसमें साहित्यकारों और उनकी रचनाओं की गोपित अन्तर्कथाएँ होती हैं । यही नहीं, इसमें साहित्यकारों और उनके साहित्य का अब तक अचर्चित इतिहास भी सुरक्षित रहता है । इस पुस्तक में ये सारी चीजें एक साथ उपलब्ध हैं । यह पुस्तक यादों में नक्श एक नयी विधा से पाठकों का साक्षात्कार ही नहीं कराती अपितु उसमें पाठकों का सहज तौर पर अन्त%प्रवेश कराती है । इसमें लेखक के साहित्य–विवेक के साथ–साथ उसका निजी दृष्टिकोण भी मुखर हुआ है । इसमें जगह–जगह पर की गयी लेखकीय टिप्पणियों का महत्त्व है । इनमें व्यक्तित्वपरक, ऐतिहासिक और आलोचनात्मक तीनों ही दृष्टियाँ समाहित हैं । स्मृत्यालोचन में साहित्य की अनेक विधाओं के साथ तारतम्य होता है, एक अन्तर्ग्रथन और एक अनोखा सम्मूर्तन होता है, जो इसे सर्जनात्मक विधा के रूप में स्थापित करता है । इस पुस्तक में साहित्यकारों के विचारों से जहाँ लेखक की सहमति असहमति का अभिव्यंजन हुआ है, वहीं उसके विचारों से टकराहट भी हुई है । उसकी रचनाओं के साथ लेखक की आत्मीयता, निकटता और कृतज्ञता जैसा मनोभाव साहित्य के पाठकों और आलोचकों के लिए जहाँ एक नई किस्म का प्रभावी पाठ बन गया है वही इसमें एकाधिक रूपविधाओं का समावेश पाठकों को आकर्षित करता है । यह हमें हलके–फुलके पाठ से लेकर साहित्य के गंभीर वाचन तक बड़ी सहजता से ले चलता है । कहना होगा कि यह अनूठी कृति आपको पाठकीय सहयात्रा के लिए अपने साथ ले लेती है साथ ही यह हमारे साहित्य–विवेक को अनुप्राणित करती अद्वितीय मार्मिक आस्वाद प्रदान करती है, जो हमें दूसरी विधाओं का अलग–अलग साहित्य पढ़ कर कभी प्राप्त नहीं हो सकता । इस पुस्तक को खरीदने, पढ़ने और इसके साथ होने से जो आपके ज्ञान–विवेक का संवर्धन होगा, वहीं इससे आपको एक नयी ताज़गी भी प्राप्त होगी ।
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