• New product

Titli Rang-Birangi

(0.00) 0 Review(s) 
2023
978-93-92998-34-8

Select Book Type

Earn 4 reward points on purchase of this book.
In stock

“मुझे आपसे एक जरूरी बात पूछनी थी । क्या आपके यहाँ बाजार से प्लास्टिक की थैलियों में सामान आता है ?” “तुम्हें इससे क्या लेना–देना ?” “असल में आजकल ज्यादातर दुकानदार प्लास्टिक की थैलियों में ही दाल–चावल, साग–सब्जी, फल और साबुन–टूथपेस्ट वगैरह दे देते हैं । घर में रोज चार–छह थैलियाँ आ जाती हैं । बाद में सफाई करते समय उन्हें कूड़े के साथ फेंक दिया जाता है । क्या आपके घर में भी ऐसा ही होता है ?” “हाँ, होता तो है ।” रमा को मानना पड़ा । “आंटी, आपसे एक अनुरोध है ।” कहते हुए लड़का नीचे झुका । उसने जमीन पर रखे अपने भारी–भरकम बैग के भीतर से कपड़े का सिला एक झोला निकाला और आगे बढ़ा दिया, “प्लीज़, बुरा न मानिएगा । आगे से अपने घर का रोजमर्रे का सामान इसमें रखकर लाया कीजिए ।” “क्यों ?” रमा भौचक्की हो उठी । “ऐसा है आंटी, हमारे मोहल्ले में तीन–चार दिन पहले एक गाय मरी हुई पाई गई थी । लोगों ने बहुत हल्ला मचाया कि इसे जहर दे दिया है । बवाल बढ़ा तो गाय का पोस्टमार्टम किया गया । आप जानती हैं, गाय क्यों मरी थी ?” “ऐं नहीं तो ।” रमा हड़बड़ा गई । लड़के के होंठों पर एक उदास मुस्कान दौड़ गई, “गाय किसी के जहर देने से नहीं मरी थी । वह इसलिए मरी, क्योंकि कूड़े के ढेर पर पड़ी प्लास्टिक की थैलियों को उसने खा लिया था और वे पेट के भीतर जाकर उसकी आँतों में फँस गई थीं ।”

You might also like

Reviews

No Reviews found.