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Upanyas Mulyankan Mala : Godaan Swaroop Aur Sarokar
ऑयन वॉट् 'उपन्यास का उदय' में निष्कर्ष निकालते हैं कि अठारहवीं सदी तक आर्थिक कारणों से पश्चिम में उपन्यास का विकास और लोकप्रियता अवरुद्ध रहा। वहाँ भी भयावह गरीबी के कारण बड़ी संख्या अशिक्षितों की रही जिसके कारण पाठकों की संख्या अत्यंत सीमित रही। लेकिन उन्नीसवीं सदी तक आते-आते आर्थिक विकास की गति आगे बढ़ी और उससे लाभान्वित होते हुए एक शिक्षित मध्यवर्ग का विकास हुआ। इसी वर्ग के आधुनिक विचारों का प्रतिपादन उपन्यास में हुआ। पूरे पश्चिमी समाज में उपन्यास लेखन में ज़बरदस्त वृद्धि हुई। उपन्यास को परिभाषित करने वाले सिद्धांतों और आलोचना पद्धति का क्रमबद्ध विकास हुआ। यही वह दौर था जब ई.एम. फार्स्टर ने काल के द्वारा जीवन अंकन को उपन्यास का विशिष्ट कार्य के रूप में देखा। राल्फ फॉक्स ने घोषणा की कि वह अपने उपन्यासों का पात्र जनता के बीच से लेता है क्योंकि उसके पाठक और आलोचक न सिर्फ जनता के बीच रहते हैं बल्कि इनके बीच एक प्रकार की सजीव एकता होती है (उपन्यास और समाजशास्त्र का रिश्ता, उपन्यास की शर्त)।
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