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Usha Yadav : Ek Sanchayan

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2023
978-81-962312-1-7

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उषा यादव पिछले पाँच दशक से हिंदी साहित्य को समृद्ध कर रही हैं । कुम्भनदास की ‘संतन को कहा सीकरी सों काम’ जैसी निस्पृह प्रवृत्ति रखते हुए माँ सरस्वती की एकांतिक–अनवरत साधना करने वाले साहित्यकार बिरले ही होते हैं । नाम कमाने का लक्ष्य न रखते हुए भी अनगिन पाठकों के बीच पहचान बनती जाना भी माँ सरस्वती की कृपा से ही संभव होता है । उषाजी को यह लोकप्रियता ‘लोक’ को व्यंजित करने के कारण ही मिली है । प्रख्यात कथाकार हिमांशु जोशी ने स्वीकार किया है, ‘उषा यादव की कहानियों में पठनीयता के गुण को मैं विशेष रूप से रेखांकित करना चाहूँगा । उनके उपन्यास ‘अमावस की रात’ तक को एक बार शुरू करने के बाद मैं स्वयं पूरा पढ़े बिना नहीं छोड़ सका था । ऐसा अद्भुत आकर्षण मैंने किसी अन्य उपन्यास में नहीं पाया ।’ जाहिर है, जीवन से चुनी उनकी वस्तु–प्रविधि जन–जन के जीवन के निकट स्वत: ही पहुँच जाती है । कभी किसी छात्रा का अनुरोध, तो कभी किसी सहकर्मी की अँसुवाई आँखों की मनुहार कि उसकी जीवन–गाथा नाम छिपाकर समाज के सामने लाई जाए । बस, उषा यादव की कलम चलती रही और मील का पत्थर रचनाएँ बनती रहीं । सच यही है कि कोई भी रचना किसी साहित्यकार को पूरी तरह समझने–समझाने में सक्षम नहीं । ‘संचयन’ भी इसका एक उपक्रम मात्र है । मैं उषा यादव को तब से जानती हूँ, जब स्वयं को भी नहीं जानती थी । ऐसा एक महाकाव्य, जिसे लगातार पढ़ती आ रही हूँ, समझती आ रही हूँ, पर अभी बहुत कुछ पढ़ना–समझना बाकी है । एक शैक्षिक संस्थान की तरह उषाजी अनवरत शिक्षा का केंद्र बनी हुई हैं । मैं ही नहीं, न जाने कितने नौसिखिए उनसे प्रेरणा लेकर साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में नये प्रतिमान गढ़ रहे हैं । यह भी उनका एक महत्वपूर्ण प्रदेय है ।

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