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Uttar Pradesh Ka Swatantrata Sangram : Mahoba
महोबा ऐतिहासिक नगर है यहाँ चन्देल राजा लगभग अट्ठाईस संख्या में हुए हैं । अत: उनका इतिहास भी दिया गया है । महोबा लोक–काव्य आल्हा के कारण जाना जाता है । यद्यपि शिलालेखों में आल्हा–ऊदल का नाम न होने से इतिहास में उन्हें वह स्थान नहीं मिला है, जो आल्हा गायकों ने अपने गायन में उनको दिया है । पूरे जनपद महोबा में पुरातत्त्व सम्पदा फैली हुई है । वास्तु स्थापत्य के उत्कृष्ट नमूने यहाँ मिलते हैं । चन्देल काल में जल प्रबन्धक बहुत अच्छा रहा है । अत: प्राकृतिक सुषमा बिखरी हुई है । चरखारी को तो बुन्देलखंड का कश्मीर कहा जाता है । महोबा से 4 कि.मी. दूरी पर मध्य प्रदेश की सीमा आरम्भ हो जाती है । अत: यहाँ के सेनानियों की सहभागिता मध्य प्रदेश के स्वाधीनता आन्दोलन में रही है और मध्यप्रदेश के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी चरखारी में बचपन बिताने वाले श्री राम सहाय तिवारी ग्राम टहनगा (छतरपुर) में रहे किन्तु उनका कार्य–क्षेत्र महोबा, चरखारी भी रहा है । श्रीपत सहाय रावत जी जराखर के थे । उन्होंने स्वयं समरगाथा पुस्तक लिखी थी जो डॉ. भवानीदीन के सम्पादन में प्रकाशित हो सकी । उ.प्र. के सैनिक पुस्तक 3 रु. मूल्य प्रकाशित हुई थी । उस समय सीमित संशाधन होते हुए कार्य कठिन था किन्तु फिर प्रत्येक मंडल के स्वाधीनता संग्राम सेनानी की सूची हिन्दी और अँग्रेजी में प्रकाशित हो सकी, शीघ्रतावश नामों में त्रुटि व उनके स्थान नाम अन्य लिखे जाने से कठिनाई जो हुई किन्तु कार्य अब भी कठिन ही था । इस पुस्तक में सेनानी को मिली सजा के विवरण में प्राप्त अभिलेख का आधार भी लिया गया है ।
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