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Vishv Cinema Ki 100 Sarvsresth Filmen

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2018
978-93-87145-48-1

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लगभग 125 साल पहले जब लुमिएर बंधुओं ने कुछ सेकण्ड्स और मिनिट्स की अवधि वाली 7 फिल्मों का पेरिस में प्रदर्शन किया तो वह किसी जादुई करिश्में से कम न था । उन्होंने स्वयं भी इस बात की कल्पना नहीं की थी कि वे भविष्य के लिए एक भरपूर मनोरंजन का बाज़ार रचने जा रहे हैं । जब वे फ़िल्में भारत में दिखाई गई तो भारतीयों के लिए भी वह एक चमत्कार से कम न था । इस अविष्कार ने महाराष्ट्र के हरीश्चन्द्र सखाराम भाटवडेकर और कलकत्ता के हीरालाल सेन को इस दिशा में प्रेरित किया । लेकिन ये सब फ़िल्में घटनाओं का छायांकन मात्र थीं । बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में इनको विस्तृत आकार देने के प्रयास किये गए । ‘द ग्रेट ट्रेन रॉबरी’ और ‘बर्थ ऑफ़ ए नेशन’ इसी के उदाहरण थे । ‘लाइफ ऑफ़ जीसस क्राइस्ट’ से प्रभावित होकर दादा साहब फाल्के ने ‘राजा हरीशचंद्र’ बनाई जिसे भारत की पहली फीचर फिल्म का दर्जा मिला और दादा साहब को भारत के पहले निर्माता निर्देशक बनने का श्रेय मिला । प्रथम विश्व युद्ध से सिनेमा भी प्रभावित हुआ । उन सालों में न्यूज़ रील और वृत्त चित्रों का जोर रहा । युद्ध की समाप्ति के बाद पौराणिक और एतिहासिक चरित्रों ने विश्व सिनेमा को प्रभावित किया । 1917 में रूसी क्रांति के बाद सिनेमा सरकारी संरक्षण में आ गया । सर्जेई आइन्स्टाइन और पुडोविन ने सिनेमा की भाषा, व्याकरण और मुहावरे गढ़े जो कालान्तर में विश्व सिनेमा की धरोहर बने । सिनेमा एक लम्बा और शोध का विषय है । यह विडम्बना है कि सिने साहित्य को गंभीरता से नहीं लिया जाता । इस दिशा में इंदौर के राकेश मित्तल ने सराहनीय काम किया है ।

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