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Vishwa Ki Rooprekha
सांइस के युग में विश्व और जीवन के प्रति हमारी दार्शनिक दृष्टि किस प्रकार की होनी चाहिए, इस पर एक पुस्तक लिखने के लिए मैंने क़लम उठाई, लेकिन हिन्दी में किस प्रकार ऐसे ग्रंथों की कमी है, उसे देखते हुए भिन्न-भिन्न साइंस संबंधी विचारों की ओर इशारा करते हुए चल देना, केवल हिन्दी जानने वाले पाठकों के प्रति अन्यायसा मालूम हुआ। और जब मैंने कुछ साइंस संबंधी विचारों पर भी लिखना शुरू किया, तो यह समझने में बहुत देर नहीं लगी, कि सभी विषयों को इकट्ठा कर एक पुस्तक नाम देने की जगह यही अच्छा है, कि उन्हें एक दूसरे की सहायक, किन्तु स्वतंत्र पुस्तकें समझा जाए। फलतः मेरी एक पुस्तक की योजना ने चार पुस्तकों का रूप लिया, जिनमें पहली है यही 'विश्व की रूपरेखा', दूसरी 'मानव-समाज', तीसरी 'दर्शन-दिग्दर्शन' और अन्तिम 'वैज्ञानिक भौतिकतवाद' । 'विश्व की रूपरेखा' में मैंने क्या लिखा है, इसको जानने के लिए पुस्तक आपके सामने है। मैंने विषय को भरसक सरल करने की कोशिश की है, और यह ध्यान में रखा है, कि उसी तल की योग्यता रखने वाले अंग्रेज़ीदाँ पाठक को यहाँ वर्णित विषय समझने में जितने आसान लगें, उतने से कुछ कम योग्यता रखनेवाले हिन्दीदाँ पाठक भी इन्हें समझ सकें। इसमें मुझे कितनी सफलता हुई है, इसे पाठक ही बतला सकते हैं।
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