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Vivah Vichar Kosh

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2014
978-93-82821-54-0

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विवाहजनित प्रेम में क्षणिक लालसा पूर्ति का भाव नहीं होता, वह नित्य है, शाश्वत है । उसमें स्नेह, अनुराग, मैत्री, करुणा, मुदिता, आल्हाद, उत्साह जैसे पावन और मधुर भाव होते हैं, जो मानव जीवन की अमूल्य निधि हंै । इन निधियों का विकास त्याग, सेवा, सहिष्णुता, धैर्य, क्षमा आदि सद्वृत्तियों से होता है और यह सभी कुछ विवाह का परिणाम है । कहने के लिए तो विवाह बंधन है, परन्तु दो प्रेमियों के लिए विवाह समाज की ओर से मिला स्वच्छन्दता का ऐसा वरदान है, जिसके आनन्दातिरेक में सम्पूर्ण मानव जीवन की यथार्थ अनुभूति होती है । विवाह द्वारा प्रेम की डोर से बँधना कुछ और ही है । कोई बिरला ही होगा जो प्रेम की इस डोर से न बंधना चाहे । प्रेम और स्नेह दु%ख, कष्ट और पीड़ा में मलहम का कार्य करते हैं । प्रेम, इश्क या मुहब्बत आत्मा की खुराक है । यह वह अमृत की बूँद है जो मरे हुए भावों को जिन्दा कर देती है । यह मानव जीवन की सर्वाधिक पाक, सबसे ऊँची, सबसे मुबारक बरकत है । सच्चे प्रेम के दुख में भी सुख की अनुभूति होती है । उसमें असीम विश्वास, असीम धैर्य और असीम शक्ति है । सच्चा प्रेम सभी कसौटियों पर सदा खरा उतरता है, कभी असफल नहीं होता । हाँ मिलन में वह उतना शक्तिवान नहीं होता, जितना वियोग में ।

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