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75 Kavitayen : Dhumil

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2025
978-93-48650-73-3

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धूमिल की कविताएँ अपनी तात्कालिकता से इतनी समझदारी से जुड़ी हुई हैं कि वह कविता अपने तात्कालिकता से मुक्त होकर आज भी प्रासंगिक बनी हुई है। अकालदर्शन धूमिल जी के समय के अकाल का प्राकृतिक चित्रण मात्र नहीं है बल्कि वह एक ऐसे मानवीय दर्शन की तरफ इशारा करती है कि उसके सम्पूर्ण बंद आज की पीड़ा से जुड़ा हुआ है। वह अपने समय के सरलीकरण से बचते हैं। 'रोटी और संसद' कविता भी इसी तरह है। कवि रोटी को आदमी से बेलवाता है। वे यहाँ भी अपने समय के सरलीकरण से बचते हैं। अगर यहीं रोटी 'औरत' से बेलवाते 'जो बहुधा भारतीय समाज में होता है। 70 प्रतिशत औरतें ही रोटियां बेलती हैं' तो वह तात्कालिकता की ओर इशारा करके चूक जाते। वह आदमी से रोटी बेलवाता है ताकि आने वाले दिनों में भी तीसरे आदमी की तलाश सम्भव कर सके और सड़क पर खड़ा होकर संसद को ललकार सकें। इसी तरह की तमाम कविता पंक्तियाँ धूमिल जी के यहाँ हैं जो तात्कालिक समय-विवेक से जुड़ी हुई हैं। जिसे कभी भी अपने समय के आईंने में पहचाना जा सकता है। पटकथा में भी बहुत से नाम हैं जिसे व्यक्ति से न जोड़कर बल्कि उसकी पहचान से जोड़ दिया गया है-

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