• New product

Aakhin Dekhi Kagad Lekhi

(0.00) 0 Review(s) 
2023
978-93-95226-08-0

Select Book Type

Earn 10 reward points on purchase of this book.
In stock

अब गाँव जाता हूँ तो तिन्दबारी बरोठा सब ध्वस्त हो गया है । घर के समाने का चबूतरा एक गड्ढे जैसा हो गया है । तालाब, घास, पेड़–पौधों से ढँक गया है । मुझे क्यों लगता है बुआ जी चबूतरे के सामने घर के बाहरी दरवाजे से लग कर बैठी किसी को दुलरा, किसी को हड़का रही हैं । चबूतरे पर पड़ी खाटों पर लोग जमा हैं । कथा–वार्ता चल रही है । दूसरी तरफ दादी गालों पर हाथ रखकर सब देख–सुन रही हैं । अचानक बुआ जी एक भजन उठाती हैंµ‘‘कुछ लेना न देना मगन रहना ।’’ स्वर लहरियाँ वातावरण में गूँजती हैं । फिर वापस यथार्थ में आता हूँ पर भजन कानों में गूँज रहा है । वह परम्परा कुछ न लेने, न देने और मगन रहने की थी । इसलिए कभी–कभी दुनियादारी के धक्के खाने पर वह मन में टीसती है । अब सब कुछ पा लेने की दौड़ है, मतलब पड़ने पर किसी को कुछ भी दे देने की कोशिश है और मगन रहनाµयह तो इस दौर में मुमकिन ही नहीं । हमारी दुनिया और बुआजी जैसों की ठेठ देहाती परम्परा के बीच दम तोड़ते रिश्तों का एक पूरा रेगिस्तान पसरा पड़ा है । क्या हम पाट पाएंगे इस रेगिस्तान को ?

You might also like

Reviews

No Reviews found.