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Apna Apna Ghar
दो शब्द विश्वविख्यात कथा-शिल्पी लेव तल्स्तोय के ये बाल-संवाद बहुत वर्ष पहले पढ़े थे। तब पढ़ते ही सबसे पहले यह विचार आया कि इन्हें हिंदी के माध्यम से आम भारतीय पाठक तक क्यों न पहुँचाया जाए ! तल्स्तोय ने मात्र इतने ही बाल-संवाद लिखे थे। नन्हे-नन्हे अबोध बच्चों के मुँह से अनायास उन्होंने वे बातें कहलाई हैं, कभी-कभी जिन्हें बड़े भी नहीं सोच पाते। सरल शब्दों में गंभीर बात कैसे कही जा सकती है-तल्स्तोय की यह सबसे बड़ी विशेषता रही है। यह विशेषता बनी रहे-रूपांतर करते समय इसका विशेष ध्यान रखा गया है। इसलिए सीधा-सीधा शाब्दिक अनुवाद न करके इन्हें भारतीय परिवेश में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, ताकि तल्स्तोय के गंभीर विचार आम भारतीय पाठक को अधिक गहराई से छू सकें और रूपांतर में भी सहजता एवं स्वाभाविकता बनी रहे। - हिमांशु जोशी
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