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Avagya Ka Samay (Poetry)

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2024
978-81-97766-72-5

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जो राजनीति के लिए संसार की परिकल्पना को त्याग देता है, वह कलाकार नहीं हो सकता क्योंकि वह विद्यमान संसार और आदर्श संसार के अंतर का विवेक खो चुका है। सच्चा कवि रचना के लिए राजनीति की बलि दे सकता है और लोलुप कवि राजनीति के लिए, लाभ-पुरस्कार, पद के लिए, रचना की बलि दे देता है। यह बात दिमाग में आयी हाल ही में मित्रवर अनिल विभाकर की एक कविता 'अमृत महोत्सव' पढ़कर। कविता पढ़ते हुए और बाद में भी बराबर यह कोंचता रहा कि वर्तमान राजनीतिक सत्ता के समर्थक अनिल जी ने जिस अनुभव-तीव्रता से यह कविता लिखी है, उसमें कवि स्वभाव का वाल्मीकि वाला तेवर है। मित्रो! में बराती आलोचक की तरह अनिल विभाकर को वाल्मीकि के समकक्ष या उनका जोडीदार नहीं बता रहा हूँ। केवल उस तेवर की बात कह रहा हूँ। कविता पढ़कर आप स्वयं निर्णय करें। परन्तु उसके पहले यह कह देना आवश्यक है कि जिस तरह का मतिमूद्ध वातावरण बन गया है, उसमें वर्तमान सत्ता के किसी पक्षधर का आलोचनात्मक होकर सोचना असम्भव है। पर अनिल जी ने आपातकाल में भी संघर्ष किया था। वही माहौल बनता देखकर वे अपने क्षोभ पर नियंत्रण नहीं कर सके और उनका आवेग कविता के रूप में व्यक्त हो गया। अपने इस विवेकसम्मत आवेग की वजह से ही यह कविता अप्रतिम प्रभाव छोड़ती है।

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