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Bhartendu Harishchand Ke Anudit Natak (2Vol.)
नाटक शब्द का अर्थ है नट लोगों की क्रिया । नट कहते हैं विद्या के प्रभाव से अपने वा किसी वस्तु के स्वरूप के फेर कर देने वाले को, वा स्वयं दृष्टि रोचन के अर्थ फिरने को । नाटक में पात्रगण अपना स्वरूप परिवर्तन करके राजादिक का स्वरूप धारण करते हैं वा वेषविन्यास के पश्चात रंगभूमि में स्वकीय कार्य साधन के हेतु फिरते हैं । काव्य दो प्रकार के हैंµदृश्य और श्रव्य । दृश्य काव्य वह है जो कवि की वाणी को उसके हृदयगत आशय और हाव भाव सहित प्रत्यक्ष दिखला दे । जैसा कालिदास ने शाकुन्तल में भ्रमर के आने पर शकुन्तला की सूधी चितवन से कटाक्षों को फेरना जो लिखा है, उसको प्रथम चित्रपटी द्वारा उस स्थान का शकुन्तला वेषसज्जित स्त्री द्वारा उसके रूप, यौवन और वनोचित श्रृंगार काय उसके नेत्र, सिर, हस्तचालनादि द्वारा उसके अंगभंगी और हाव भाव काय तथा कवि कथित वाणी के उसी के मुख से कथन द्वारा काव्य का, दर्शकों के चित्त पर खचित कर देना ही दृश्यकाव्यत्व है ।
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