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Bhumandalikaran Aur Hindi Upanyas
Computek In Attachments 1:37 PM (4 hours ago) to me भूमण्डलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण के दौर में विशालकाय आवारा पूँजियों ने पिछले दशकों में मानवीयता के साथ जिस तरह का व्यतिक्रम भरा व्यवहार किया, विजय राय द्वारा संपादित ‘हिन्दी की भूमंडलोत्तर कथाभूमि’ उसका प्रतिबिम्बन करती है । शब्दों का अपने अर्थों से खिसक जाना, आत्मीय विस्थापन, स्वयं से अलगाव और व्यवस्था द्वारा लादी गई विसंगतिपूर्ण ऐकान्तिकता की पड़ताल इस आलोचनात्मक पुस्तक में बहुत महत्त्वपूर्ण तरीक़े से की गई है । पुस्तकें पढ़कर जब कोई थक चुका होता है और समाज को पढ़ना शुरू करता है तो सन्त्रास से गुज़रने के बाद, नई प्रस्थापनाएँ अपने–आप जन्म लेने लगती हैं । यह सब–कुछ अचानक नहीं होता । इनके पीछे उस पंछी की वेदना शामिल रहती है, जिसे उड़ना भुलवा दिया गया होता है । अनुभूति की तीव्रता, कल्पना की उड़ान और दुनिया को बेहतर बनाने की पुरज़ोर कोशिश इसमें बेहद सकारात्मक तरीके से व्याप्त है । इस दौरान नए जनमाध्यम आए और इन नई तकनीकों ने मनुष्य को बाज़ार का ग़ुलाम बनाने का प्रयास किया । इनकी मंज़िलें पहले से तय हैं, रास्ते भले ही मुख़्तलिफ़ हों ।
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