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Bhuvneshwar : Natak Avam Ekanki Samagra
भुवनेश्वर के नाटकों का संग्रह 'कारवां' का प्रथम संस्करण मार्च, 1935 में लीडर प्रेस, प्रयाग से छपते ही वह उन्हें ख्याति के बहुत ऊंचे पायदान पर ले गया। इसमें कुल छह नाटक संकलित थे- 'श्यामा एक वैवाहिक विडम्बना', 'एक साम्यहीन साम्यवादी', 'शैतान', 'प्रतिभा का विवाह', 'रोमांस-रोमांच' और 'लाटरी' । इनमें 'शैतान' नाटक 'पतित' शीर्षक से 'हंस' में छप चुका था। इस नाटक को आगे चलकर स्वयं भुवनेश्वर ने पुस्तक में यह नया नाम देकर छपवाया। उन्होंने अपने इन नाटकों की भूमिका के लिए सूक्तियों का प्रयोग किया है जो सर्वथा नया है। दूधनाथ सिंह कहते हैं, 'नाट्य-लेखन और सामाजिक-मानवी अन्तर्संबन्धों की यह अद्भुत सूक्यात्मक व्याख्या है। भुवनेश्वर एक मसीहा की तरह बोल रहे हैं, जैसा कि वे अपने सारे साहित्य में और सम्भवतः अपनी जिंदगी के संवादों में भी बोलते रहे। यह स्टाइल उन्होंने बाइबिल से लिया था जिसका उन्होंने गहरा अध्ययन किया था और जिस एक किताब के वे ताजिंदगी मुरीद (बक्रौल शमशेर) रहे।' इन सूक्तियों में भुवनेश्वर के कथन और उनके गूढ़ अर्थ हमें चकित करते हैं। उनकी लिखी यह वाक्य-श्रृंखला बेहद सुगठित है जिनमें गहरे जीवन अनुभव रचे-पगे हैं जो कई बार हमें बेघते भी हैं। सभ्य और आवरणयुक्त जीवन जीने वाले समाज के लिए इस तरह की व्यंग्योंक्तियां असहज भी करती हैं। 'कारवां' के अंत में संग्रहीत सूक्तियां जिनमें खासतौर पर स्त्री पर टिप्पणियां हैं उन्हें बांचते हुए सामान्य पाठक अनेक बार उनके विपक्ष में जाकर खड़ा हो जाता है
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