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Chitra
अण्णा भाऊ साठे मराठी के सुप्रसिद्ध लेखक हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रचार-प्रसार हेतु अण्णा का समग्र साहित्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद द्वारा पहुंचना अत्यंत आवश्यक एवं प्रासंगिक है। लोक-संस्कृति उनकी रचनाओं का मूल आधार है। लोक-जीवन को उन्होंने गहराई में जाकर प्रस्तुत किया है। विषम परिस्थितियों में भी जीवन के प्रति वे सकारात्मक रूप में देखते हैं, यह उनके लेखन, चिंतन की प्रमुख विशेषता है। मराठी साहित्य सारस्वत में उन्होंने प्रचुर लेखन किया है। मराठी साहित्य और भारतीय साहित्य के लिए उनका साहित्य जीवन मूल्यों का स्रोत है। अपनी तमाम रचनाओं में प्रस्तुत पात्रों को उन्होंने जुझारू रूप में प्रस्तुत किया है। उनके पात्र जमीनी हकीकत को स्वाभाविकता से बयां करते हैं, पाठक को अपने लगते हैं। 'चित्रा' अण्णा भाऊ साठे का प्रसिद्ध उपन्यास है। इस उपन्यास की नायिका चित्रा है। उसके माध्यम से दीन-हीन परिस्थिति में जीवन यापन करने वाले समाज का यथार्थ और संघर्ष लेखक ने बयान किया है। मेहनत और ईमानदारी ही चरित्र का श्रेष्ठ गहना है, जो हर एक आदमी ने पहनना चाहिए, इसी तरह का आग्रह लेखक पाठकों से करते हैं। लेखक की शिक्षा अल्पकालिक रही परिस्थिति ने उन्हें पाठशाला में जाकर पढ़ाई करने का अवसर ही प्रदान नहीं किया, बावजूद इसके वे 'चित्रा' उपन्यास में शिक्षा का महत्व समझाते हैं। चित्रा की मां सखुबाई जो दीन-हीन अवस्था में अपना जीवन यापन कर रही है किंतु अपने दोनों लड़कियों ने पाठशाला में जाकर पढ़ाई करना चाहिए इस तरह की इच्छा रखती हैं।"... दो लड़कियों के साथ सखुबाई वैधव्य का जीवन बिताने लगी। किंतु उसका परिश्रम तीनों का पेट भरने के लिए पर्याप्त नहीं था, इसलिए मुश्किलें बढ़ने लगीं। अकेली मेहनत करके भी कितना कमाएगी खुद के लिए हर रोज इस्तेमाल के वस्त्र, लड़कियों के लिए अँगूला-लँहगा, तेल, आवश्यक वस्तुएं और पेट के लिए अन्न। वह परेशान हो गई। घर में अस्थिरता बढ़ने लगी।
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