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Ek Sahityik Ki Diary

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2025
978-93-48409-50-8

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मैं उसकी चपेट में आ गया । मैं कह सकता था कि दोनों करूँगा । लेकिन मैंने ईमानदारी बरतना ही उचित समझा । मैंने कहा, ‘‘मैं तो लेखक की हैसियत से ही सौन्दर्य की व्याख्या करना चाहूँगा । इसलिए नहीं कि मैं लेखक को कोई बहुत ऊँचा स्थान देना चाहता हूँ, वरन् इसलिए कि मैं वहाँ अपने अनुभव की चट्टान पर खड़ा हुआ हूँ ।’’ उसने भौंहों को सिकोड़कर और फिर ढीला करते हुए जवाब दिया, ‘‘बहुत ठीक । लेकिन जो लोग लेखक नहीं हैं वे भी तो अपने ही अनुभव के दृढ़ आधार पर खड़े रहेंगे और उसी बुनियाद पर बात करेंगे । इसलिए उनके बारे में नाक–भौं सिकोड़ने की ज“रूरत नहीं । उन्हें नीचा देखना तो और भी ग“लत है ।’’ उसने कहना जारी रखा, ‘‘इस बात पर बहुत कुछ निर्भर करता है कि आप किस सिरे से बात शुरू करेंगे । यदि पाठक, श्रोता या दर्शक के सिरे से बात शुरू करेंगे तो आपकी विचार–यात्रा दूसरे ढंग की होगी । यदि लेखक के सिरे से सोचना शुरू करेंगे तो बात अलग प्रकार की होगी । दोनों सिरे से बात होगी सौन्दर्य–मीमांसा की ही । किन्तु यात्रा की भिन्नता के कारण अलग–अलग रास्तों का प्रभाव विचारों को भिन्न बना देगा । –-इसी पुस्तक से

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