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Hindi Mein Vigyan Lekhan Evam Lok Vigyan
श्यामसुन्दर दास ने पारिभाषिक शब्द निर्माण की आवश्यकता पर बल डालते हुए कहा कि “जब कभी किसी व्यक्ति से किसी वैज्ञानिक विषय की पुस्तक लिखने या अनुवाद करने के लिए कहा जाता है तो वह इसके लिए तभी तैयार होता है जब सभा उन वैज्ञानिक शब्दों के पर्यायवाची शब्द हिन्दी में बनाकर दे दे जिनकी उसे पुस्तक या लेख को लिखने में जरूरत पड़ेगी, आज भी अधिकांश लेखक यही माँग करते हैं ।" लेकिन आज की स्थितियाँ पहले जैसी नहीं हैं अब पारिभाषिक शब्द निर्माण की उतनी जरुरत नहीं है जितनी बन चुके शब्दों के प्रयोग की है। वैज्ञानिक और तकनीकी आयोग आदि संस्थाओं ने विज्ञान के विविध विषयों से सम्बन्धित पर्याप्त शब्दों का निर्माण कर लिया है। अतः आज की आवश्यकता शब्द निर्माण की न होकर विभिन्न विषयों के वैज्ञानिकों एवं विद्वानों का हिन्दी भाषा में विज्ञान लेखन की ओर प्रवृत्त होना है। आज हिन्दी में मौलिक वैज्ञानिक लेखन से ऐसी ही अपेक्षाएँ की जाती हैं कि वह अनुवादाश्रित जटिलता और दुरुहता से अपने आप को बचाए तभी उसमें बोधगम्यता एवं सम्प्रेषणीयता जैसे गुण आ सकेंगे। निस्सन्देह आज वैज्ञानिक शब्दावली और अभिव्यक्तियों की दृष्टि से हिन्दी अत्यन्त समृद्ध है फिर भी आज वैज्ञानिक विषयों पर हिन्दी में लेखन बहुत कम और अपर्याप्त हैं इसका कारण भाषा की असमर्थता न होकर वैज्ञानिकों का इस दिशा में रुझान ना होना है। आज आवश्यकता है वैज्ञानिकों को हिन्दी में बोलने और लिखने के लिए प्रेरित किया जाए। हिन्दी में विज्ञान लेखन पर यह आशंका जताई जा सकती है कि हिन्दी की पारिभाषिक शब्दावली दुरुह होती है लेकिन सत्य यह भी है कि भारतीयों के लिए हिन्दी शब्दावली अंग्रेजी की अपेक्षा अधिक सहज और बोधगम्य रहती है आवश्यकता सिर्फ उसे प्रचलन एवं प्रयोग में लाने की है।
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