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Karal Katha Corona Ki (Kisi Ki apda Kisi Ke Avsar)

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2024
978-93-48162-47-2

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विश्वग्राम, 20वीं सदी के आठवें दशक में सर्वाधिक महत्वपूर्ण शब्द पूँजी के पेट से पैदा हुआ था जिसे पूँजी ने मानवतावाद के मसीहा के रूप में स्वयं को सजाने में पूरी सामर्थ्य से प्रचारित किया था, और जो पिछड़े भू भागों के अन्धेरे कोनो तक गूँजता हुआ स्वयं के अस्तिव को सार्थक कर उठा था, भारत का प्रभु वर्ग जैसा कि उसका स्वभाव है हर नवीनतम को अपने अतीत से खंगाल उसका पूर्व प्रतिष्ठाता बन्ने का प्रमाण देता रहता है, ने इस विचार को भी सहमति प्रदान करी तो सुधड़ता से स्वीकृति प्रदान की थी कि हमारा तो वैदिक काल से ही 'वसुधैव कुटुम्बकम' का उद्घोष रहा है। नूतन-पुरातन के समावेशन पर सोचते हुए यह सूत्र सम्पर्क में आने लगा कि प्रभु वर्ग के अपनत्व का अर्थ ही अपनी प्रभुता का सम्पूर्ण विश्व में विस्तार करने से होता है। आज का भूमण्डलीकरण भी अतीत के वसुधैव कुटुम्बकम का ही समानार्थक संस्करण है। मुखौटे कभी भी प्राकृत आकृति का स्थान नहीं ले सकते, भूमण्डलीकरण का मुखौटा तो तीसरे दशक में ही, अर्थात् 21वीं सदी के पहले दशक में ही तार तार होने लगा, जब पूँजीवादी व्यवस्था की निजीकरण की लपलपाती जीभ भीषण मन्दी के संकट की आग से जलने लगी और राजसत्ताओं को मात्र तीन क्षेत्रों तक उत्तरदायी बना, सम्पूर्ण मानव समाज की सेवा हेतु स्वयं को समर्पित घोषित करके अपने उत्तरदायित्वों के भार से कराहने लगी, और जो (सम्पूर्ण मानव समाज का तीव्र शोषण) मानवता का मुखौटा लगाकर कार्य करने की धूर्तता पाले थी, सारे मुखौटे नोंच सार्वजनिक सम्पत्तियों की बैसाखियों को अपनी बगलों में लगाने हेतु राजसत्ताओं को नग्नता के साथ बाध्य करने लगी।

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