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Kavya Ke Roop

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2024
978-81-19141-69-2

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मैंने हिंदी–साहित्य के विभिन्न विस्तारोन्मुख अंगों की रूपरेखा और शिल्प–विधान के साथ हिन्दी तथा अँग्रेजी साहित्य में विकास–क्रम के दिग्दर्शन कराने का प्रयत्न किया है । अब तो काव्य की प्राचीन परिभाषा में भी हेर–फेर करने की आवश्यकता प्रतीत होने लगी है । नाटकों को नई रूपरेखा मिली है । आजकल के महाकाव्यों में घटनाओं के वर्णन की अपेक्षा विचारोंं और भावों का अधिक विस्तार रहता है । प्रबंध काव्यों में भी गीतलहरी प्रभावित होती दिखाई देती है । काव्य–शास्त्र को भी साहित्य की गति के साथ आगे बढ़ना होगा । —भूमिका से

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