• New product

Khushnuma Veerangi

(0.00) 0 Review(s) 
2019
978-93-82554-03-5

Select Book Type

Earn 2 reward points on purchase of this book.
In stock

भारत के प्रख्यात दार्शनिक आचार्य रजनीश (ओशो) से किसी लेखक ने एक बार पूछा कि किसी भी किताब का आरंभ और अंत सबसे कठिन हिस्सा क्यूँ होता है इसके लिए क्या करना चाहिए, ओशो ने जवाब दिया कि यह कठिन इसलिए है क्योंकि लेखक को अंदाज़ा ही नही होता कि कहाँ से आरंभ करे औऱ कहाँ पर अंत करे, प्रत्येक अंत अज्ञात है, एक मायने में दुनिया की प्रत्येक किताब अधूरी है क्योंकि वह दो अज्ञात छोरो के बीच स्थित है, जीवन भी इसी भांति आरंभ औऱ अंत के बीच कही है क्योंकि जीवन का भी न कोई आरंभ है औऱ न कोई अंत है, ओशो ने आगे कहाँ किताब का आरंभ कही से भी किया जा सकता है क्योंकि अगर अंत के अनुसार आरंभ अगर बेतुका लगे तो उसे बदला जा सकता है क्योंकि फिर पूरी किताब आपके सामने होती है, ओशो असल मे कह रहे हैं कि जीवन मंझधार है और प्रत्येक किताब में भी मंझधार मौजूद है औऱ मंझधार वास्तविक ज्ञान नही हो सकता, अगर कोई मेरे से ये सवाल करता तो ओशो के जवाब के अतिरिक्त, मैं यह अवश्य बताता कि एक लेखक के तौर पर मैं भी यह महसूस करता हूं कि निसन्देह आरंभ औऱ अंत कठिन है क्योंकि इन दोनों स्थानों पर लेखक विशेष तौर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा होता है ,बीच तो केवल बहाव है, इन दोनों छोरो पर लेखक अपना आकर्षण विशेषत % छोड़ना चाहता है, लेकिन ग़ज़लों में यह सुविधा नही है, एक ग़ज़लकार को आरंभ और अंत का चुनाव करने की उतनी आज़ादी नही मिलती । गज़लों में सीमित लाइनों और चुनिंदा शब्दों के माध्यम से एक लयबद्धता को कायम रखते हुए अपनी बात कहनी पड़ती है, मेरे ऐसे ही प्रयास के साथ ‘खुशनुमा वीरानगी’ आपके हवाले–––––

You might also like

Reviews

No Reviews found.