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Kuran Mein Hindi
कुर्आन में हिन्दी की रचना जिस दृष्टि से हुई है वह स्पष्ट और प्रकट है, देश की जो दशा है वह भी किसी से छिपी नहीं है । धर्म की आढ़ में जो उपद्रव हो रहा है वह और भी घातक हो गया है । ऐसी स्थिति में धर्म के मूल ग्रन्थों में कितना मेल है और वस्तुत: एक धर्म दूसरे का कहाँ तक विरोधी है आदि प्रश्नों को जान लेना कितना आवश्यक है इसे भी कौन नहीं जानता । पर यदि हम नहीं जानते तो यही कि अरबी रसूल के उदय के समय हमारा उनका क्या नाता था । इसी नाता को खोलने का इस छोटी सी पुस्तक में अल्प प्रयत्न किया गया है जो अपर्याप्त होने पर भी मार्गनिर्देश के लिए पर्याप्त है । -चन्द्रबली पांडे
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