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Natya Mulyankan Mala : Natakkar Bhishm Sahani
प्रगतिशील चेतना सम्पन्न रचनाकार भीष्म साहनी के नाटक, हिंदी नाटकों के संसार में अपनी खास पहचान रखते हैं। यों उनके नाटकों में विद्यमान द्वंद्वात्मक वितान उनके कथा साहित्य में भी पूरी तौर पर समाया है। यही कारण है कि उनकी कहानियों, उनके उपन्यासों में नाट्य रूपांतर की बेहतर संभावनाएं मौजूद हैं। 'हानूश', 'कविरा खड़ा बाज़ार में', 'माधवी' और 'मुआवज़े' जैसे चर्चित नाटक साहित्य में विशिष्ट स्थान रखते हैं। विशिष्ट इस मायने में कि ये सभी सत्ता प्रतिष्ठानों के विरोध में की गई कार्यवाहियों, व्यवस्था के कुरूप और वीभत्स चेहरों की पड़ताल करते हुए कलात्मक और मानवीय सरोकारों की पैरवी करते हैं। राजनीतिक सत्ता, धार्मिक सत्ता, पुरूष सत्ता और इन्हें प्रश्रय देने वाली विभिन्न ताकतों को भीष्म जी न केवल बेनकाब करते हैं बल्कि अपनी जनपक्षधर दृष्टि के साथ इसके समानांतर एक वैकल्पिक व्यवस्था को खड़ा करते हैं। ऐतिहासिक, मिथकीय और समसामयिक संदर्भों से रचे कथानकों को तीन अंकीय नाट्य-योजना में बांधकर वे सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों को व्यक्त करते हैं। पाठक और दर्शक के समक्ष नाटकों के माध्यम से देश-दुनिया की उस तस्वीर को भीष्म जी सामने लाते हैं जो जुल्म की बुनियाद पर खड़ी है। भीष्म जी उसकी तह में जाकर, उसके अनेक चेहरों की शिनाख्त करते हुए, तमाम अंर्तविरोधों से गुजरकर, उसके अवश्यंभावी अंत को कलात्मकता के साथ रचते हैं। कहीं बहस-मुबाहिसें, कहीं व्यंग्य, कहीं घनीभूत द्वंद्व और कहीं चरम तनाव रचती स्थितियां इनके नाटकों में शामिल हैं। भीष्म साहनी हमारे समय की चेतना के प्रहरी हैं। उनके नाटकों में हम भारतीय समाज के धड़कते हुए जीवन को महसूस कर सकते हैं। 'भीष्म साहनी' मूल्यांकन माला को संपादित करने के क्रम में वरिष्ठ रंगकर्मियों, रंगचिंतकों से लेख के लिए अनुरोध करते हुए मेरी योजना एकदम स्पष्ट थी कि नाटककार भीष्म साहनी की प्रगतिशील और जनवादी दृष्टि को सामने लाते हुए उनके नाटककार का वैशिष्ट्य उभारना है। इस तरह रचनाकारों द्वारा नाटककार के नाटकों के मूल्यांकन में रंगदृष्टि का समग्र मूल्यांकन भी शामिल किया जाना मुख्य है। नाटक दृश्य विधा है। नाटक विशिष्ट तकनीक से जुड़ी विधा है।
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