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Pratipaksh Mein Kavita
चर्चित कवि उमा शंकर चौधरी की कविताओं की पहचान उसकी राजनीतिक सजगता से है। अपनी कविताओं में हमेशा अपने समय और उसकी चुनौतियों से वे जूझते रहे हैं। यह गद्य की पुस्तक उन्हीं सवालों को सैद्धांतिक रूप में समझने की कोशिश है, कि आखिर कविता का मूल उद्देश्य क्या है? समाज में कविता की भूमिका क्या है? जैसा कि शीर्षक से ही स्पष्ट है कि यह पुस्तक कविता को सत्ता के प्रतिपक्ष में खड़ा करने का प्रयास करती है। यह सत्ता किसी भी स्वरूप और किसी भी समय की हो सकती है। कविता की तीक्ष्णता उसे सत्ता का सबसे ज्यादा मौजूं प्रतिपक्ष बनाती है। यह सवाल बार-बार उठता रहा है कि आज जब दुनिया बहुत तेज़ी से बदल रही है तब कविता का वजूद ही क्या है? कविता के पाठक ही कितने हैं? कविता अपने विस्तार में कहीं भी कहां पहुंच पा रही है? और ये सारे सवाल कोई एक देश, एक भाषा या फिर किसी एक क्षेत्र के नहीं हैं। साहित्य और उसमें भी खासकर कविता के वजूद के साथ ये सवाल कमोबेश हर जगह इसी रूप में नत्थी हैं। कविता एक विचार है। और विचार सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कविता और विचार का अपना संग-साथ है।
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