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Ramvilas Sharma Pratinidhi Nibandh
रामविलास जी ने अपने जीवनकाल में इतना काम किया और इतने विषयों पर मौलिक चिंतन किया कि उसे एक सीमित पृष्ठों की संचयिका में समेट पाना आसान नहीं है। इस संचयिका में कोशिश यह की गई है कि रामविलास जी की प्रतिनिधि रचनाएँ जो दूसरे संचयनों में आ चुकी हैं, उन्हें न लिया जाए। रामविलास जी ने जिन विषयों पर काम किया है, उन पर उन्होंने पहले भी छोटे-छोटे लेख और निबंध लिखे हैं, बाद में इन्हीं विषयों को विस्तार देकर लंबे लेख और पुस्तकें लिखी हैं। पृष्ठों की सीमा को देखते हुए उनके उन सूक्ष्म रूप में लिखे लेख और आलोचनात्मक निबंधों को लिया गया है। सभी लेख छोटे नहीं हैं, कुछ बड़े भी हैं पर आगे चलकर रामविलास जी ने जो महत्वपूर्ण काम किया इन्हें उनकी पृष्ठभूमि के रूप में ग्रहण किया जा सकता है। निराला, तुलसीदास, छायावाद, भारतेंदु, प्रेमचंद पर रामविलास जी का लेखन बहुपठित है। इन रचनाकारों के संबंध में रामविलास जी की मान्यताओं का हिंदी के अकादमिक जगत में विशेष महत्व है। प्रस्तुत संकलन में इन मान्यताओं के संकेत देखे जा सकते हैं। रामविलास जी मार्क्सवाद के आलोक में परंपरा का मूल्यांकन करनेवाले अद्वितीय विद्वान हैं। मार्क्सवादियों से बहस करते हुए उन्होंने उन्होंने तुलसीदास का नया और सकारात्मक मूल्यांकन किया। इस संदर्भ में उन्होंने कालिदास के साहित्य पर भी खुलकर विचार किया। यहाँ वह लेख दिया जा रहा है। पाठक इस लेख में देखेंगे कि एक महान रचनाकार को रामविलास जी ने संतुलित दृष्टि से देखा है।
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