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Sahitya ki samkalinta

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2015
978-93-81997-06-2

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इस पुस्तक में वर्तमान से टकराते, वर्तमान पर पुनर्विचार करने की कोशिश करते, वर्तमान की स्थिरता को चुनौती देते हुए कुछ लेखों को संकलित किया गया है । एक तरह से यह अलग–अलग गन्ध, अलग–अलग रंग के फूलों से सजा एक गुलदस्ता है । इसकी विविधता में, इनकी बहुलता में एक खास तरह की एकात्मकता मौजूद है, ऐसा मेरा मानना है । इस पुस्तक में शामिल लेखों में मौजूद इस एकात्मकता की पहचान में ही हमारे सांस्कृतिक–साहित्यिक गतिरोध के बिन्दु भी मौजूद हैं और साथ ही साहित्य–समाज की सामान्य भूमि की परिकल्पना का आधार भी । अगर ये लेख किसी भी रूप में सामाजिक सांस्कृतिक हलचल की गति को प्रभावित करने या उन्हें प्रश्नांकित करने में सफल हो सके तो यहाँ इन लेखों को एक साथ संकलित करने का उद्देश्य पूरा होगा । इस पुस्तक में संकलित लेखों के लेखकों ने जिस तत्परता से और उत्साह के साथ लेख उपलब्ध कराए, उसके लिए सिर्फ धन्यवाद कहकर उनके योगदान को कम नहीं करूँगा । हाँ, यह जरूर है कि सांस्कृतिक विमर्श का रास्ता आज एक सामूहिकता की माँग करता है, वह इस कार्य के दौरान शिद्दत से मुझे महसूस हुआ । किशन कालजयी ने समय–समय पर इस काम के लिए प्रोत्साहित किया । वह यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि सम्पादन–प्रकाशन को वे किस गम्भीरता और सामूहिकता के रूप में देखते हैं । अनन्य प्रकाशन की पूरी टीम इस योजना का साकार रूप है । यह पुस्तक उन सभी के सामूहिक प्रयत्न का ही परिणाम है । ___अच्युतानन्द मिश्र

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