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Shakti Parv
यह नाटक मालती के लिए है जो सालों से रामचरितमानस पढ़ रही हैं और अभी भी पढ़ रही है। न जाने कितने श्लोक उसे कंठस्थ है। दोहे-चौपाई उसके जीवन में इस कदर रचे-बसे हैं कि कुछ कहना होता है तो उसी का संदर्भ देती है। किसी सवाल का जवाब देना होता है तो जवाब में कोई दोहा या चौपाई जैसे उसकी जुबान पर हाज़िर होता है। लेकिन आज तक गले में न कंठी माला डाली, न रामनामी चादर ओढी । जितनी पारंपरिक है, उतनी ही आधुनिक भी। कहती है, 'वैष्णव जन को तैने कहिए, पीर पराई जाने सो।' कहीं भी किसी को कोई पीड़ा, दर्द होता है, वह महसूस करती है। उनकी पीड़ा में सहभागी होती है।
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