• New product

Shiksha Aur Rajniti

(0.00) 0 Review(s) 
2019

Select Book Type

Earn 5 reward points on purchase of this book.
In stock

भारतीय दृष्टि कहती है कि जगत और प्रकृति, बाह्य शक्ति और आन्तरिक शक्ति, शरीर और आत्मा का सामञ्जस्य करना अनिवार्य है । अन्यथा सुख, आनन्द और मुक्ति नहीं हो सकती । बल्कि उलटे मनुष्य पीड़ित रहेगा । बाह्य जगत के साथ प्राण की, प्राण के साथ मन की एकरूपता नष्ट करने से नए–नए दु%ख–कष्ट उभरते रहेंगे । यन्त्रों, उपकरणों, विविध रसास्वादनों और मनोरंजनों के सतत आविष्कार से उनका कभी शमन नहीं होगा । वह ‘महाशनो’ है, क्योंकि इच्छाओं का अन्त नहीं है । एक बार इच्छा अपनी स्वाभाविक सीमाओं को पीछे छोड़ देती है, तब फिर उसके रुकने, शान्त होने का कोई कारण नहीं रह जाता । वह केवल ‘चाहिए’, और चाहिए की अन्ध–रट लगाती हुई बढ़ती जाती है । आज ऐसे मनुष्य पश्चिम ही नहीं, पूरब में भी बड़ी संख्या में देखे जा सकते हैं । बड़ी संख्या में पश्चिमी विश्व के व्यक्ति जीवन में किसी शून्य को भरने की धुँधली कामना में पूरब के गुरुओं, महात्माओं, सन्तों की तलाश करते भारत, चीन, तिब्बत आदि देशों में आते रहते हैं । जबकि भारत से अच्छे–अच्छे सुखी, सम्पन्न घरों के युवक भी और अधिक धन, सुविधा आदि की लालसा में अमेरिका, यूरोप आदि स्थानों पर जाने, बसने की योजनाएँ बनाते रहते हैं । यह दोनों प्रवृत्तियाँ अविद्या और विद्या की समझ के अभाव और विलगाव को प्रकट करती हैं । इनका सम्यक योग होना ही समाधान है ।

You might also like

Reviews

No Reviews found.