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Shree Gandhicharitmanas
गांधीजी पर कवि द्वारा रचित यह महाकाव्य अपने आपमें काफी महत्वपूर्ण है । विद्वान साहित्यकारों की उपर्युक्त टिप्पणियों से भी इस महाकाव्य की महत्ता स्पष्ट होती है । हालांकि गांधी का स्पष्ट मानना था कि “विद्वानों को संसार में कोई नहीं समझा सका है जबकि भक्तों को समझाया जा सकता है । श्रीराम और श्रीकृष्ण ने विद्वानों के साथ माथा–पच्ची नहीं की थी । विद्वान लोग तो जो घटनाएं होती हैं, उनपर चर्चा करते हैं और उस घटना में कौन से कारण सहायक थे, इसका ही निर्णय करते हैं । लेकिन घटनाओं के घटित कराने में भगवान और उनके भक्तों (गोपी और वानरों) का ही हाथ होता है । अर्जुन विद्वता दिखाने चला, इसलिए उसे अनार्य, अस्वर्ग्य , अकीर्तिकर, क्लीव, क्षुद्र और दुर्बल–हृदय कहा गया, लेकिन जब वह भक्त बना तब उसका मोह नष्ट हो गया । भगवान स्वयं ही अपने भक्त हैं और संसार को भक्ति करना सिखाते हैं ।” विद्वान भी तो राम के संसार में ही रहते हैं । बहुत–से विद्वान राम का नाम लेकर तर भी गये हैं । सच बात तो यह है कि विद्वानों को भक्त के अतिरिक्त दूसरा कोई समझा नहीं सकता । भक्त होने की अभिलाषा रखने वाला मैं विद्वानों को समझाने का प्रयत्न भी कर रहा हूँ । मुझे मोह नहीं है, इसलिए जो लोग नहीं समझते, उनपर मुझे क्रोध नहीं होगाय परंतु अपनी भक्ति में ही न्यूनता होने के कारण मुझे स्वयं पर ही क्रोध होता है । मेरे हृदय में राम सर्वदा निवास करें, इसके लिए अधिक हृदय–शुद्धि की आवश्यकता है यह उपदेश पाने के लिए गांधी सदा लालायित रहते हैं । यदि भक्ति में रस न पैदा कर सके तो यह भक्त का दोष है, श्रोता का नहीं । रस होगा तो उसे लोग अवश्य ही लूटेंगे । प्रस्तावना से
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