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Siddhant Aur Adhyanyan
यह पुस्तक और इसका दूसरा भाग-‘काव्य के रूप’ इस दृष्टि से लिखे गए हैं कि विद्यार्थियों को काव्याङ्गों, रस रीति, लक्षणा, व्यञ्जना, अलंकारों आदि का सामान्य परिचय हो जाए और उनका काव्य में स्थान समझ में आ जाए । उसी के साथ वे वर्तमान साहित्यिक समस्याओं और वादों से भी अवगत हो जाएँ । इनमें पूर्व और पश्चिम के मतों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है । किन्तु इनमें वर्णित सिद्धान्तों का (कम–से–कम पहले भाग का) मूल स्रोत भारतीय साहित्य–शास्त्र है । समालोचना के प्रकार और सिद्धान्त अवश्य विदेशी परम्परा से प्रभावित हैं । पहले भाग में काव्य के सिद्धान्त हैं और उन सिद्धान्तों का भारतीय साहित्य के अध्ययन से उदाहरण देकर पुष्ट किया गया है । दूसरे भाग में काव्य के विभिन्न रूपों का वर्णन है । इसमें उनके सैद्धान्तिक विवेचन के साथ उनका हिन्दी भाषा में विकास भी दिखाया गया है । ये दोनों भाग मिलकर साहित्यालोचन का पूरा क्षेत्र व्याप्त कर लेते हैं । ---गुलाबराय
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